सुविचार,प्रीति शुक्ला। सकारात्मकता बहुत ही मुश्किल जान पड़ती है। जीवन में अगर हम एक कणिन दौर से गुजर रहे है, तो अपनी सोच को सकारत्मक रखना बहुत ही मुश्किल काम है।
मन हर बार यही प्रश्न दोहराता है कि आखिरी मैं ही क्यों?
हर बार मैं ही ऐसे हालातो से क्यों जुझता हुं?
यह सब मेरे साथ ही क्यों होता है?
पर यह भी सत्य है कि सोना भट्टी में तपता है, इसलिये बेश्किमती है, वरना चमक तो हजारों चीजों में है। इसलिऐ हर परीक्षा में ये सोच कर बैठिए की सबसे मुश्किल प्रश्न सबसे काबिल के पास ही आता है। अपनी काबिलियत और ईश्वर पर भरोसा ही सफलता की कुँजी है। अतः सकारत्मक सोच के साथ निरंतर प्रगतिशील रहिऐ।