देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस बचे खुचे राज्यों में भी बगावत में उलझ गई है। कांग्रेस के अंदर विभिन्न राज्यों में मचे अंतर्कलह जारी है। मौजूदा दौर में पार्टी में दो धुरी है। एक वे पुराने कांग्रेस नेता हैं, जिन्हें सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा ने हासिए पर ढकेल दिया है। ऐसे वरिष्ठ नेताओं पर कांग्रेसी होने का ठप्पा तो है, लेकिन कांग्रेस में उनकी पूछ-परख नहीं रह गई। इसकी वजह साफ है कि इनलोगों ने मौजूदा नेतृत्व को आईना दिखाने का काम किया है। मगर चाटूकारों से घिरी कांग्रेस ने उन्हें उम्र के कारण मस्तिष्क खराब करार दिया है। गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है- सचिव बैद गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास। यानी मंत्री, वैद्य और गुरु- ये तीनों यदि (अप्रसन्नता के) भय या (लाभ की) आशा से (हित की बात न कहकर) प्रिय बोलते हैं तो (क्रमशः) राज्य, शरीर और धर्म-इन तीन का शीघ्र ही नाश हो जाता है। मौजूदा कांग्रेस में ऐसे लोग हैं, जिनका स्वयं का कोई अस्तित्व नहीं बचा है, वे गांधी परिवार की कृपा पर आश्रित हैं। इसके कारण वे नेतृत्व को चारों-ओर हरा-भरा दिखा रहे हैं। हालिया घटनाक्रम कमजोर, परिपक्वता और अदूरदर्शी नेतृत्व का संकेत है।
इतिहास गवाह है, जब भी नेतृत्व कमजोर हुआ है अपनों के बीच से ही बगावत सुर निकले हैं। कांग्रेस अंतर्कलह के कारण पहले कर्नाटक, इसके बाद मध्य प्रदेश की सत्ता गंवा चुकी है। इससे भी पार्टी हाईकमान ने सबक नहीं लिया। पंजाब में जिस तरीके से समस्याओं के समधान के लिए कदम उठाए गए, उससे ऐसा लगता है कि पार्टी में परिपक्वता का घोर अभाव है। पार्टी को इस तरह की समस्याओं को लेकर गंभीर होना चाहिए था। पंजाब के घटनाक्रम से पार्टी पूरी तरह से कमजोर हो चुकी है, जो पार्टी कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में लगभग सभी नगर निगम के चुनाव में महज छह माह पहले जीत हासिल की थी। वहीं अब अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले टूटती हुई नजर आ रही है।
कांग्रेस में जी-23 के नेताओं और कपिल सिब्बल की प्रेस कांफ्रेंस के बाद कांग्रेस नेतृत्व सीडब्ल्यूसी की बैठक बुलानी चाहिए। हालांकि कांग्रेस की ओर से बैठक नहीं बुलाने का कारण कोरोना महामारी दिया जा रहा है। मगर सवाल यह है कि जब पार्टी कई राज्यों में चुनाव लड सकती और उसमें उसके वरिष्ठ नेता प्रचार भी कर सकते हैं तो फिर सीडब्ल्यूसी बैठक बुलाने में क्या दिक्कत है। हालांकि इसका सही जवाब तो गांधी परिवार ही दे पाएगा। कपिल सिब्बल के घर पर हमलों को लेकर भी पार्टी को खुद पर विचार करना चाहिए और अनियंत्रित अपने कार्यकर्ताओं को समझाना होगा।
उधर, नेतृत्व पर अपमान करने का आरोप लगाकर पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह अपनी नयी राजनीतिक पारी शुरू करने का संकेत देते हुए कहा कि अब कांग्रेस में नहीं रहेंगे और पार्टी से इस्तीफा दे देंगे। ऐसे दल में वह नहीं रह सकते जहां उन्हें अपमानित किया जाए और उन पर विश्वास न किया जाए। इस घोषणा के बाद पूर्व मुख्यमंत्री ने ट्विटर हैंडल के परिचय से कांग्रेस का उल्लेख भी हटा दिया। पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने भी कहा कि मुख्यमंत्री के अधिकार को बार-बार कम करने के प्रयासों को खत्म किया जाना चाहिए।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने पार्टी की पंजाब इकाई में मचे घमासान और कांग्रेस की मौजूदा स्थिति को लेकर नेतृत्व पर सवाल खड़े किए और कहा कि कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठक बुलाकर इस स्थिति पर चर्चा होनी चाहिए तथा संगठनात्मक चुनाव कराये जाने चाहिए। उन्होंने कई नेताओं के पार्टी छोड़ने का उल्लेख करते हुए गांधी परिवार पर इशारों-इशारों में कटाक्ष किया कि जो लोग इनके खासमखास थे वो छोड़कर चले गए, लेकिन जिन्हें वे खासमखास नहीं मानते वे आज भी इनके साथ खड़े हैं।
पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद से नवजोत सिंह सिद्धू के इस्तीफे के बाद पैदा हुई स्थिति को लेकर सिब्बल ने कहा कि इस सीमावर्ती राज्य में ऐसी कोई भी स्थिति नहीं होनी चाहिए जिसका पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई और सीमापार के दूसरे तत्व फायदा उठा सकें। उन्होंने कहा कि भारी मन से आप से बात कर रहा हूं। एक ऐसी पार्टी से जुड़ा हूं जिसकी ऐतिहासिक विरासत है और जिसने देश को आजादी दिलाई। अपनी पार्टी को उस स्थिति में नहीं देख सकता जिस स्थिति में पार्टी आज है। इसके बाद चंद चाटूकारों ने सिब्बल के घर के बाहर प्रदर्शन किया और हमले किए।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद, मनीष तिवारी और आनंद शर्मा समेत ‘जी-23’ समूह के कई नेताओं ने पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल के आवास के बाहर हुए पार्टी कार्यकर्ताओं के विरोध प्रदर्शन की निंदा करते हुए कहा कि इस ‘सुनियोजित उपद्रव’ में शामिल लोगों के खिलाफ पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से आग्रह है कि वह कड़ी कार्रवाई करें।
कांग्रेस ने राजस्थान में बगावत रोकने के लिए रोडमैप तैयार किया है, लेकिन वहां आग नहीं भडकेगी इसकी गारंटी नहीं है। इस बीच बगावट की सुगबुगाहट छत्तीसगढ में भी शुरू हो गई है। यहां चुनाव के बाद पूर्ण बहुमत में आने के बावजूद विवाद टालने के लिए नेतृत्व को भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव के बीच ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री का फार्मूला बनाना पडा। भूपेश बघेल मुख्यमंत्री बन गए। अब ढाई साल पूरे हो चुके हैं, मगर भूपेश मुख्यमंत्री का पद छोडने को तैयार नहीं है। उधर, सिंहदेव भी अब खुलकर ताल ठोक रहे हैं। राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि हाईकमान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को पद छोडने के लिए कह दिया है। शायद यही वजह है कि भूपेश को अपने समर्थक विधायकों को दिल्ली में डेरा डलवाना पडा है।
छत्तीसगढ में इस छत्तीस के आंकडे में ऊंट किस करवट बैठेगा इसे तो हाईकमान ही तय करेगा। जिस तरह से कांग्रेस हाईकमान ने कर्नाटक, मध्य प्रदेश और पंजाब में अपरिपक्वता और अदूरदर्शिता से फैसले लिए गए और वहां पार्टी की जो हालत हुई है, उसे देखते हुए कोई सार्थक फैसला लिए जाने की कम ही उम्मीद है। पूरी पार्टी बगावत का सामना कर रही है, लेकिन नेतृत्व है कि मानता ही नहीं।
ताजा घटनाक्रम में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार को कांग्रेस में शामिल कर लिया गया। उनके साथ ही, गुजरात से निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवानी भी ‘वैचारिक रूप से’ कांग्रेस के साथ जुड़ गए। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के मुख्यालय में मेवानी ने राहुल गांधी को संविधान की प्रति भेंट की तो कन्हैया ने उन्हें महात्मा गांधी, भीमराव आंबेडकर और भगत सिंह की तस्वीर भेंट की। वेणुगोपाल ने कहा, कन्हैया कुमार देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रतीक हैं। जिग्नेश जी के भी शामिल होने से पार्टी को मजबूती मिलेगी। अब कन्हैया पार्टी को कितना मजबूत कर पाएंगे यह तो सयम बताएगा, लेकिन इतना तय है कि भाजपा को कांग्रेस पर आरोप लगाने का एक और बड़ा मौका मिल गया। भले चुनाव में बात विकास की होनी चाहिए, पर भाजपा राष्ट्र विरोध की बात जरूर रखेगी और कांग्रेस पर हमला करेगी कि उसने कन्हैया कुमार जैसे लोगों को पार्टी में शामिल किया है।