रायपुर, पूनम ऋतु सेन। बस्तर दशहरा विश्व में मनाया जाने वाला सबसे लंबा त्यौहार है जो 75 दिनों तक चलता रहता है। यह त्यौहार रावण वध के प्रसंग से परे दंतेश्वरी माता को समर्पित छत्तीसगढ़ अंचल का लोकप्रिय पर्व है, जिसमें अंचल के समस्त जन एकजुट होकर एक-एक रस्म की अदायगी पूर्ण भक्तिभाव से सम्पन्न करते हैं।
इन्हीं लोक रस्मों के सीरीज के आज 5वें भाग में हम पिरती फारा के रस्म के बारे में जानेंगे। नारफोड़नी और जतरवाही के बाद यह रस्म भी रथ निर्माण के लिए लकड़ी पूजा और उसके आधार निर्माण से संबंधित है।
क्या है पिरतीफारा की रस्म
पिरतीफारा की रस्म में पहले निर्माणाधीन रथ के सामने बकरे की बलि दी जाती हैं। रथ निर्माण में लगे कारीगर आरा मिल से फारा लाकर करीब 25-30 फीट लंबे वजनी फारों को बड़ी सावधानी से ऊपर चढ़ाते हैं। इस कार्य के दौरान कोई अप्रिय घटना न हो, इसलिए फारा चढ़ाने के पहले रथ की पूजा-अर्चना की जाती है।
क्या है रस्म की पूरी प्रकिया
बस्तर दशहरा रथ निर्माण में लगे झारउमरगांव और बेड़ाउमरगांव के करीगरों द्वारा फूल रथ बनाने के दौरान मगरमुंही पूजा किया जाता है। मगरमुही लकड़ी का नाम है जिसे रथ के ऊपरी हिस्से में चढ़ाया जाता है। सालों से चली आ रही परंपरा के अनुसार इस दौरान रथ कारीगर रथ के चेसिस को एक्सल पर रखकर इसके पहले पहिए में एक्सल लगाने की प्रक्रिया पूरी की जाती है।
मगरमुंही लकड़ी के इस नाम का आधार
एक्सेल लगाने के बाद रथ के सामने और पिछले हिस्से में करंजी के जंगलों से सियाड़ी की छाल से तैयार किया गया रस्सा बांधा जाता है। कारीगरों के अनुसार इस लकड़ी के दोनों छोर का आकार मगर के खुले मुंह के जैसा होता है। मगर अपने सामने आने वाले लोगों को मौत के घाट उतार देता है। जिसके चलते इस लकड़ी का नाम मगरमुंही रखा गया है। ग्रामीणों ने बताया कि ऐसी परंपरा रही है कि बस्तर दशहरे में होने वाली रथ परिक्रमा के दौरान कोई भी व्यक्ति रथ के सामने नहीं आता है।
देसी तकनीक आज भी है बरकरार
मगरमुंही पूजा के बाद इस 30 फीट लंबे भारी-भरकम मगरमुंही को एक्सल पर चढ़ाने का कार्य किया जाता है इसके लिए सभी कारीगर एक साथ मेहनत और परंपरागत तकनीक का सहारा लेते हैं। इन लकड़ियों के नीचे छोटे गोल आकार(रिंग आकार) की लकड़ियां लगाई जाती हैं जो रथ को रोलिंग कराने का कार्य करती हैं।
फारा चढ़ाने के बाद कारीगर इस पर स्तंभ खड़ा कर रथ की एक मंजिल तैयार करते हैं। इसके बाद उस पर साल की लकड़ी के फारे बिछाकर आधार तैयार करते हैं। इस पर ही छत्र के साथ मां दंतेश्वरी के प्रमुख पुजारी परिक्रमा के दौरान बैठते हैं।
क्या हुआ इस वर्ष के पिरतीफारा रस्म में
इस वर्ष भी बस्तर दशहरा के सभी रस्म सही विधि से सम्पन्न किये जा रहे हैं, इस वर्ष भी 3 अक्टूबर 2021 को मगरमुंही पूजा विधान को रथ कारीगरों ने दलपति की मौजूदगी में पूरा किया। साथ ही कारीगरों ने फूल, सिंदूर, नारियल, काला बकरा, 7 मोंगरी मछली और अंडे की बलि दी और मगरमुंही लकड़ी को ऊपर चढ़ाने की परंपरागत प्रथा को आज भी जारी रखा गया।
इस रस्म को जानने के बाद “Ekhabri विशेष -बस्तर दशहरा और लोक रस्मों की कड़ी” के अगले सीरीज में इसी से संबंधित आगामी अन्य पारंपरिक रस्मों को विस्तार से जानेंगे। ऐसे ही छत्तीसगढ़ से जुड़े रोचक तथ्यों को जानने के लिए Ekhabri.com से जुड़े रहें।