एक ओर वाहवाही लूट रहे सीएम दूसरी ओर लोगों को नहीं मिल रहा योजना का लाभ
गरियाबंद। कल प्रदेश में किए गए कार्यों को लेकर कांग्रेस की घोषणापत्र क्रियान्वयन समिति ने जब भूपेश बघेल की पीठ थपथपाई तो पूरा प्रदेश गर्व महसूस कर रहा होगा। इसमें जानकारी दी गई कि कांग्रेस ने ढाई साल में ही36 में से 24 वादे पूरे कर दिए। पर आज हम आपको जो खबर बताने जा रहे हैं वह इस उपलब्धि पर धब्बा साबित हो सकती है। मामला गरियाबंद जिले का है जहां कमार जाति का एक दिव्यांग युवक माता-पिता की मौत के बाद राशन कार्ड के लिए भटक रहा है। जो शासन-प्रशान की कार्यप्रणाली और वाहवाही पर सवालिया निशान लगा रहा है। जिले के छुरा विकास खण्ड के ग्राम पंचायत मडेली के कमार पारा निवासी दिव्यांग चेतन की कहानी पंचायती सरकार की करतूतों की पोल खोलती हुई बया करती है कि छत्तीसगढ़ के विशेष जन जाति कमार समुदायों को शासन की योजनाओं का लाभ किस हद तक मिल रहा है इसका जीता जागता उदाहरण है दिव्यांग चेतन कमार है। चेतन के सिर से माता-पिता का साया हमेशा-हमेशा के लिए उठ गया। उपर से दोनों पैर जन्म जात खड़े होने के लायक नहीं है। जिंदगी जीने के लिए सरकारी राशन ही आसरा था वह भी पंचायती सरकार और अफसर शाही नियम कानून के चलते छिन गया और चेतन को अपने रिश्तेदारों का बोझ बना दिया है। गरीब दिव्यांग चेतन कमार ने कहा कि आज दस साल हो गये माता-पिता को स्वर्गवासी हुये। माता के नाम पर राशनकार्ड था मौत होने के बाद पंचायत के सचिव ने राशनकार्ड को रख लिया। नया राशनकार्ड बनाऊंगा बोला था पर आज तक नहीं बनाया। जब-जब पंचायत सचिव के पास गया तो गरियाबंद कलेक्टर आफिस वाले नहीं बना रहे हैं बोल कर हमेशा बैरंग लौटा देते हैं। आज तक एक रुपया दो रुपये क्या दस रुपये वाले राशनकार्ड नहीं बनाये अधार कार्ड की फोटो कॉपी रख लिये फार्म में दस जगह हस्ताक्षर करवा लिए।
मैंने आठवीं कक्षा तक पढ़ाई की है आगे पढाई नहीं की। स्कूल आने जाने की परेशानी होती थी। मेरे माता-पिता एंव बडे भाई की मौत होने पर राष्ट्रीय परिवार सहायता की बीस हजार रुपये भी नहीं मिले। सरकार ने कमारो के लिए क्या किया है, चावल हम २५ रुपये में खरीद कर खाते हैं। सरकार से मांग है हम कमार परिवार का राशनकार्ड बनाएं, बैटरी वाली ट्राईसकिल मुझे चाहिए और नौकरी इसके अलावा अवास वगैरह नहीं चाहिए घास-फूस की झोपड़ी ही ठीक है।