बिहार की राजधानी पटना जंक्शन स्थित हनुमान मंदिर पर हनुमानगढ़ी (अयोध्या) के साधुओं ने अपना दावा किया है। मंदिर प्रबंधन से जुड़े साधुओं ने इसके लिए बिहार राज्य धार्मिक न्यास पर्षद को पत्र लिखा है। महावीर मंदिर न्यास पर्षद के सचिव आचार्य किशोर कुणाल ने दावा को खारिज करते हुए कहा कि महावीर मंदिर पटना हाई कोर्ट के आदेश के अनुसार चलता है। अयोध्या में राम-रसोई का संचालन महावीर मंदिर की ओर से किया जा रहा है। महावीर मंदिर रामजन्म भूमि में प्रस्तावित राम मंदिर के लिए प्रतिवर्ष दो करोड़ रुपये की राशि का सहयोग दे रहा है। यह सब हनुमानगढ़ी के साधुओं को रास नहीं आ रहा है। साधुओं की मंडली महावीर मंदिर पर अपना फर्जी दावा पेश करने के लिए अयोध्या में अभियान चला रहे हैं।
हनुमानगढ़ी व पर्षद को उपलब्ध कराया गया दस्तावेज : आचार्य किशोर कुणाल ने बताया कि हनुमानगढ़ी के गद्दीनशीन महंत प्रेमदास एवं बिहार राज्य धार्मिक पर्षद के अध्यक्ष एके जैन को महावीर मंदिर का इतिहास और कानूनी दस्तावेज उपलब्ध कराए गए हैं। महावीर मंदिर में हनुमानगढ़ी के साधु पूजा-अर्चना करते रहे हैं। पुजारी उमा श्ांकर दास के विरुद्ध अनेक श्ािकायतें मिलने के कारण्ा उन्हें मंदिर के सेवा भाव से हटा दिया गया था। हनुमानगढ़ी से आए आठ साधु में सात एक ही परिवार से हैं। जिसमें कुछ पुजारी अभी सेवा भाव में लगे हैं। 1987 से 1996 तक महावीर मंदिर में कांची मठ के शैव पुजारी नारायण भट्ट, सूर्य नारायण भट्ट और रवींद्र भट्ट मंदिर के पुजारी रहे हैं।
किसी आदेश व दस्तावेज में हनुमानगढ़ी की चर्चा नहीं : महावीर मंदिर न्यास पर्षद का कहना है कि 15 अप्रैल, 1948 को पटना उच्च न्यायालय ने महावीर मंदिर को सार्वजनिक मंदिर घोषित किया था। न्यायालय के किसी आदेश में हनुमानगढ़ी की चर्चा नहीं है। 1935 से मंदिर का संचालन न्यास समिति की ओर से हो रहा है। 1956 में धार्मिक न्यास पर्षद और महावीर मंदिर न्यास समिति के बीच समझौता के अनुसार न्यास समिति जब तक मंदिर का आर्थिक विकास करते रहेगी न्यास पर्षद इसके संचालन में हस्तक्षेप नहीं करेगी। 1958 में पटना उच्च न्यायालय ने इस समझौते को स्वीकृति दी थी। आचार्य कुणाल ने बताया कि 1990 में धार्मिक न्यास पर्षद ने इसके सुचारू संचालन के लिए विस्तृत योजना बनाई। इसी के अनुरूप मंदिर का संचालन हो रहा है। योजना के विरुद्ध राम गोपाल दास ने पटना हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा दायर किया था। दोनों अदालतों में उनकी हार हुई। उन्होंने बताया कि 1900 में अलखिया बाबा ने पटना नग रपालिका से मंदिर की चारदीवारी के लिए अनुमति मांगी थी। इसका प्रमाण उपलब्ध है। अलखिया बाबा गोसाई थे। उनका असली नाम भेख नारायण था। उनके पिता का नाम गणेश गोसाई और भाई शिव चरण थे। इनमें से किसी का संबंध हनुमानगढ़ी से नहीं रहा है।