छत्तीसगढ़ के मरवाही क्षेत्र के विकास को लेकर उदासीनता बनी हुई है। इस क्षेत्र को विकास से दूर रखकर वन सम्पदाओं का दोहन किया जा रहा है। यहाँ कस ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार की जनाकांक्षी योजनाओं की घोषणाएं केवल कागजी साबित हो रही हैं। जंगल पहाड़ों की तलहटी में बसे गांवों की स्थिति बद से बदतर है।
आदिवासी बाहुल्य जिले गौरेला पेंड्रा मरवाही के मरवाही विकासखंड के गांव कटरा के धनुहारी टोला में पीने के पानी की भारी किल्लत है। यहां के लोग कई किलोमीटर दूर जंगल में नदी से पानी ढोने को मजबूर हैं। यह हाल हर मौसम में रहता है। नदी के किनारे रेत के हिस्से में एक छोटा सा गड्ढा बनाया जाता है, जिसे ठोड़ी कहते हैं। ग्रामीणों को पीने के पानी के लिए एक किलोमीटर की दूरी तय कर ऊंची-नीची पगडंडियों को पार करते हुए एक बहते हुए नाले के पास पहुंचना होता है। जहां नदी के किनारे रेत के बीच एक गड्ढा बनाया जाता है, जिससे गांव की महिलाएं, पुरुष और बच्चे बारी-बारी से एक-एक कर पीने का पानी निकालते हैं और साथ लाए बर्तन में भरते हैं। ज्यादातर इस काम को महिलाएं करती हैं।
यह पूरा इलाका घने जंगलों के बीच बसा है, यहां जंगली जानवरों का भी खतरा बना रहता है, उसके बावजूद पानी की आपूर्ति के लिए ये ग्रामीण जान जोखिम में डालकर हर मौसम में इसी तरह नाले का गंदा पानी पीने को मजबूर हैं। नाले का गंदा पानी पीने के कारण स्वास्थ्य पर भी इसका बुरा असर पड़ रहा है। पानी के इस किल्लत के निराकरण के लिए आज तक न तो प्रशासनिक और न ही पंचायत स्तर से कोई पहल हुई है। प्रशासन के लाख दावों के बावजूद भी मरवाही के इस कटरा गांव के धनुहारि टोला के इन ग्रामीणों की स्थिति वहीं की वहीं यथावत है।