यंगून। म्यांमार में सेना ने सोमवार को फिर सत्ता पर कब्जा कर लिया। सेना ने देश की सर्वोच्च नेता और स्टेट काउंसलर आंग सान सू की और राष्ट्रपति विन मिंट समेत कई वरिष्ठ नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। आजादी मिलने के बाद से म्यांमार पर ज्यादातर वक्त सेना का शासन रहा है। वर्ष 1962 में सेना यहां सत्ता पर काबिज हो गई थी। सेना की तानाशाही से देशवासियों को आजादी दिलाने और लोकतंत्र की बहाली के लिए आंग सान सू की 22 साल लंबी लड़ाई लड़ी थी। आइए जानते हैं कि म्यांमार में क्यों पैदा हुआ राजनीतिक संकट, कौन हैं आंग सान सू की और सेना प्रमुख जनरल मिन आंग ह्लाइंग। म्यांमार में पिछले कई दिनों से सैन्य गतिविधियां अचानक से तेज हो गईं थी, इसके चलते लोगों के मन में तख्तापलट की आशंका घर कर रही थी, लेकिन रविवार देर रात उनकी यह आशंका हकीकत में बदल गई। अब राजधानी नेपीता की अहम इमारतों में सैनिक तैनात हैं। सड़कों पर बख्तरबंद वाहन गश्त कर रहे हैं। कई शहरों में इंटरनेट अभी भी बंद है। ज्यादातर सरकारी इमारतों पर सेना का कब्जा है। टीवी चैनलों का प्रसारण बंद कर दिया गया है।
पहले हालत और फिर सत्ता बदली
म्यांमार की राजधानी नेपीता समेत बड़े शहरों में इंटरनेट बंद है और कुछ जगहों पर फोन सर्विस भी बंद कर दी गई है। सरकारी चैनल एमआरटीवीका टेलिकास्ट बंद हो गया है और उसने इसके लिए तकनीकी दिक्कतों का हवाला दिया है। लेकिन जब सोमवार सुबह लोग नींद से जागे, तब तक देश की कमान सेना के हाथ जा चुकी थी। सुबह लोगों को जब आधी रात को हो चुके सत्ता परिवर्तन के बारे में पता लगा, तो लोगों ने बाजारों में जाकर जमकर खरीदारी शुरू कर दी। कुछ लोगों ने इसका विरोध भी किया, जिन्हें चुप कराने के लिए सैनिक पहले से तैनात थे।
-राजनीतिक संकट का कारण
दरअसल, पिछले साल नवंबर में हुए चुनावों में संसद के संयुक्त निचले और ऊपरी सदनों में सू की की पार्टी ने 476 सीटों में से 396 सीटों पर जीत हासिल की थी, लेकिन सेना के पास 2008 के सैन्य-मसौदा संविधान के तहत कुल सीटों का 25 फीसदी आरक्षित हैं। कई प्रमुख मंत्री पद भी सेना के लिए आरक्षित हैं। नतीजे आने के बाद वहां की सेना ने इस पर सवाल खड़े कर दिए। सेना ने चुनाव में सू की की पार्टी पर धांधली करने का आरोप लगाया है। इसे लेकर सेना ने सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रपति और चुनाव आयोग की शिकायत भी की है।