क्षय रोग यानी टीबी को क्या बीसीजी टीके की बूस्टर डोज से रोका जा सकता है? तमिलनाडु स्थित राष्ट्रीय क्षय रोग अनुसंधान संस्थान (एनआइआरटी) के विज्ञानी इसकी संभावना तलाशने के लिए जल्द ही एक अध्ययन शुरू करने वाले हैैं। इसके तहत टीबी के मरीजों के निकट संपर्क में रहने वाले छह से 18 साल के बच्चों व किश्ाोरों को बीसीजी की बूस्टर डोज दी जाएगी। अभी टीबी की रोकथाम के लिए जन्म के समय ही बीसीजी (बेसिल कैलमेट गुएरिन) का टीका लगाया जाता है।
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) के संस्थान एनआइआरटी की निदेशक डा. पद्मा प्रिदश्रिनी ने कहा कि नवजात बच्चों में बीसीजी टीकाकरण का प्रभाव सर्वविदित है। यह टीका बच्चों में मेनिनजाइटिस और प्रसारित टीबी के खिलाफ प्रभावी सुरक्षा प्रदान करता है। उन्होंने कहा कि बीसीजी के टीके को दोबारा लगाने को लेकर विज्ञानियों में अनिश्चितता है। यह सही है कि बीसीजी की दूसरी डोज से प्रतिरक्षा बढ़ती है, लेकिन यह पता लगाया जाना बाकी है कि यह टीबी के मरीजों के नजदीकी संपर्क में रहने वाले बच्चों को बीमारी की चपेट में आने से बचा भी सकती है। उन्होंने कहा कि यह अध्ययन देश के सात केंद्रों में 9,200 बच्चों पर किया जाएगा।
सीरम इंस्टीट्यूट आफ इंडिया ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से लैटेंट-टीबी का पता लगाने के लिए अपनी सीवाई-टीबी इंजेक्शन को राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) में शामिल करने को कहा है, ताकि 2025 तक भारत को टीबी मुक्त बनाया जा सके।











