छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री और 2 उपमुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण के साथ ही मंत्रिमंडल विस्तार पर नवनिर्वाचित विधायकों के साथ प्रदेश के कद्दावर नेताओं की भी नजर है। बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह को दरकिनार नए चेहरों को कमान सौंपकर एक तरह साफ संकेत दे दिया है कि अब वह नए चेहरों के साथ आगे बढ़ेगी। बीजेपी ने इसके संकेत 2018 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद 2019 लोकसभा चुनाव में सभी 11 सीटों पर नए नेताओं को मौका देकर दे दिया था।
विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 1 केंद्रीय मंत्री समेत 3 सांसदों को मैदान में उतारा था। इसके अलावा सभी पुराने और दिग्गज चेहरों पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह, बृजमोहन अग्रवाल, अजय चंद्राकर, राजेश मूणत, केदार कश्यप, प्रेमप्रकाश पांडे और अमर अग्रवाल को मौका दिया गया था। इनमें प्रेमप्रकाश पांडे को छोड़कर सभी चुनाव जीत चुके हैं। प्रदेश में अधिकतम 13 मंत्री बनाए जा सकते हैं। इनमें से 3 पद अब भर चुके हैं। शेष 10 के लिए माथापच्ची जारी है। माना जा रहा है कि कई दिग्गजों के पत्ते कट सकते हैं और उनकी जगह नए नेताओं को मौका दिया जा सकता है।
प्रदेश में मंत्रिमंडल विस्तार में लेटलतीफी पर कांग्रेस संचार प्रमुख सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि, पूर्ण बहुमत मिलने के बाद भी बीजेपी और मुख्यमंत्री मंत्रिमंडल के सदस्यों का चयन नहीं कर पा रहे हैं। उन्होंने कहा कि इसके पीछे कारण यह है कि वरिष्ठ नेताओं की उपेक्षा की गई है, जो चार-पांच बार लगातार चुनाव जीतकर आए विधायकों की उपेक्षा करके नए लोगों को मौका दिया जा रहा है। इसके कारण से बीजेपी में असंतोष का माहौल है।
राजनीति के जानकारों का मानना है कि 15 साल तक एक ही चेहरे सामने होने के कारण पांच वर्ष पूर्व विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ा था। इसके बाद बीजेपी के रणनीतिकारों ने प्रदेश की जनता को नया और युवा नेतृत्व देने का निर्णय लिया। गत लोकसभा चुनाव में प्रयोग सफल होने के बाद विधानसभा चुनाव में भी आजमाया। अब इसका असर नए मंत्रिमंडल में भी देखने को मिल सकता है।