कांग्रेस के दिग्गज नेता राहुल गांधी को आपराधिक मानहानि के मामले में अदालत से दो साल की कैद की सजा होने के बाद संसद सदस्यता से हाथ धोना पड़ा है। अब सबसे पहली चुनौती सदस्यता बहाल कराने की है। कानूनविदों का कहना है कि अगर ऊपरी अदालत राहुल गांधी की दोषसिद्धि पर रोक लगा देती है तो उनकी संसद सदस्यता बहाल हो जाएगी। कानूनविद यह भी मानते हैं कि राहुल गांधी का आपराधिक मानहानि का मुकदमा रद कराने के लिए हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट नहीं जाना भी बड़ी कानूनी चूक है। राहुल गांधी की ओर से इस केस में कानूनी भूल की गई है, जिसका नतीजा आज की स्थिति है।
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील सीएस वैद्यनाथन कहते हैं कि सदस्यता जाने का कारण दोषी ठहराया जाना और सजा होना है। ऐसे में अगर अपीलीय अदालत राहुल गांधी को बरी कर देती है, तो उनकी अयोग्यता समाप्त हो जाएगी और संसद सदस्यता बहाल हो जाएगी। दोषसिद्धि पर अंतरिम रोक से सदस्यता समाप्त करने वाली अधिसूचना भी स्वत: स्टे मानी जाएगी, क्योंकि वह अधिसूचना परिणामी है। यानी सजा के परिणाम के कारण अयोग्यता की अधिसूचना निकली है। तो दोषसिद्धि और सजा दोनों पर रोक के बाद वह अधिसचूना भी स्थगित समझी जाएगी। यह और बात है कि लक्षद्वीप के सांसद मोहम्मद फैजल को अभी तक लोकसभा में प्रवेश नहीं मिला है। हालांकि, उन्होंने एक केस में अपनी दोषसिद्धि पर रोक लगवा ली है।
जाने-माने संविधानविद सुभाष कश्यप कहते हैं कि राहुल गांधी की ओर से अधिसचूना रद करने और दोषसिद्धि पर रोक के लिए याचिका दाखिल की जा सकती है और हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट उस पर अंतरिम स्थगन दे सकता है। कश्यप इंदिरा गांधी के मामले का हवाला देते हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 12 जून, 1975 को इंदिरा गांधी को दोषी ठहरा कर चुनाव रद कर दिया था। इसके बाद इंदिरा गांधी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी और सुप्रीम कोर्ट ने आंशिक रोक आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इंदिरा गांधी संसद की कार्यवाही में भाग ले सकती हैं, लेकिन मतदान में हिस्सा नहीं लेंगी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से इंदिरा गांधी की सदस्यता चालू रही थी। सुप्रीम कोर्ट के वकील डीके गर्ग भी कहते हैं कि अपीलीय अदालत से दोषसिद्धि पर अंतरिम रोक ही राहुल की सदस्यता बहाल कर सकती है।
गर्ग कहते हैं कि मानहानि का मुकदमा रद कराने के लिए राहुल गांधी को पहले ही हाई कोर्ट जाना चाहिए था। अगर ऐसा हुआ होता तो शायद यह स्थिति नहीं आती जो आज है। केस रद कराने की मांग न करना राहुल गांधी की बड़ी कानूनी चूक है। इतने बड़े नेता को कोई कानूनी विकल्प नहीं छोड़ना चाहिए था। जिसके पास इतने सारे दिग्गज वकील हैं राय देने के लिए उसे पहले ही हाई कोर्ट जाना चाहिए था। वहां राहत नहीं मिलती तो सुप्रीम कोर्ट जाते। जो केस की कमजोरियां आज गिनाई जा रही हैं, उनकी सच्चाई अदालत में उसी समय परखी जाती तो शायद स्थित आज से भिन्न् होती।