नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें लखनऊ के एक वृद्धाश्रम में रहने वाले एक बुजुर्ग दंपती को दूसरों को परेशान करने के बावजूद वहां से बेदखल नहीं करने को कहा था। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा, बच्चों द्वारा बुजुर्ग माता-पिता का परित्याग करना अब जीवन का कटु सत्य बन गया है। नतीजतन उम्र के ढलान पर वे वृद्धाश्रम में रहने के लिए मजबूर हैं, लेकिन वृद्धाश्रम में रहते हुए कोई बुजुर्ग वहां रहने वाले अन्य बुजुर्गों को परेशान नहीं कर सकता। वृद्धाश्रम में अच्छे व्यवहार को बनाए रखने की जरूरत है। जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की पीठ ने यह टिप्पणी लखनऊ के समर्पण वरिष्ठ जन परिसर नामक वृद्धाश्रम में रहने वाले एक बुजुर्ग दंपती को बेदखल न करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए की। पीठ ने कहा, यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है जब माता-पिता की देखभाल बच्चे नहीं करें। अपने बच्चों द्वारा माता-पिता का परित्याग अब जीवन का कटु सत्य है। पीठ ने कहा, बुजुर्ग माता-पिता को इस स्थिति में सामंजस्य बिठाना मुश्किल होता है कि उम्र के इस पड़ाव में उन्हें वृद्धाश्रम में रहना पड़ रहा है। बुजुर्ग व्यक्तियों के लिए उम्र के ढलान पर वृद्धाश्रम में रहने के लिए मजबूर होने पर उनके मानसिक आघात को भलीभांति समझा जा सकता है, लेकिन उनकी पीड़ा अन्य साथियों या वृद्धाश्रम को चलाने वालों के लिए अशांति का कारण नहीं हो सकती है।
+प्रशासन को लाइसेंस खत्म करने का हक
पीठ ने कहा कि वृद्धाश्रम में रहने वाले लोग लाइसेंसधारी हैं और उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे न्यूनतम स्तर का अनुशासन और अच्छा व्यवहार बनाए रखें और साथियों को परेशान न करें क्योंकि वे भी वरिष्ठ नागरिक हैं। पीठ ने कहा कि यदि बुजुर्ग वृद्धाश्रम में अन्य साथियों की शांति भंग करने का कारण बनते हैं तो वृद्धाश्रम का प्रशासन उनके लाइसेंस समाप्त करने और उन्हें आवंटित कमरा खाली करने के लिए कहने के लिए स्वतंत्र है।