लेखक – रवि भोई (वरिष्ठ पत्रकार, लेखक)
छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार कल 20 जुलाई से किसानों के त्यौहार हरेली के अवसर पर गोधन न्याय योजना की शुरूआत करने जा रही है। इस योजना के तहत किसानों और पशुपालकों से गोबर खरीदी जाएगी, फिर उसका वर्मी कम्पोस्ट बनाकर बेचा जायेगा। योजना के पीछे सरकार की सोच और अवधारणा अच्छी दिखाई दे रही है। इसकी सफलता और विफलता क्रियान्वयन पर निर्भर करेगा। यह योजना गांवों की अर्थव्यवस्था को बदलने के साथ किसानों की रासायनिक खाद की निर्भरता को कम करने वाली और जैविक खाद्यान्न उत्पादन के लिए भी मील का पत्थर साबित हो सकती है।
वर्तमान में मशीन से खेती करने का चलन बढ़ गया है। ट्रैक्टर और हार्वेस्टर के जमाने में किसान हल से खेती की पुरानी पद्धति को पूरी तरह छोड़ चुके हैं। इस कारण वे न गाय पाल रहे हैं और न ही बैल रख रहे हैं। पहले गाय पालते थे और बैल से हल चलते थे , जिसके चलते किसानों के घरों में गोबर होता था। गोबर को एक गड्डे में एकत्र करते थे, जिससे वह प्राकृतिक तौर पर कम्पोस्ट खाद बन जाता था , जिसका इस्तेमाल किसान अपने खेतों में करते थे। गांव के गरीब आवारा पशुओं का गोबर बिन कर इकट्ठा करते और किसानों को बेचते थे। गोधन न्याय योजना से पुरानी परंपरा और व्यवस्था लागू होने पर निश्चित तौर पर गांवों की माली हालात बदलेगी। वही लोगों को भी रसायन मुक्त खाद्यान्न भी मिलेगा। रसायन युक्त खाद्य पदार्थ को आज स्वास्थ्य के लिए काफी हानिकारक माना जा रहा है। रासायनिक खाद के प्रयोग से दूसरी बड़ी समस्या जमीन की उर्वरा शक्ति लगातार घटने की है।
छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है। जैविक खाद नहीं मिलने और बनने से किसान रासायनिक खाद के भरोसे फसल लेने लगे। इससे खेती की लागत हर साल बढ़ रही है । खर्च के हिसाब से किसानों को फसल का दाम नहीं मिलता।छत्तीसगढ़ में लघु और मध्यम किसानों की संख्या ज्यादा है। किसानों के लिए महंगी खेती भारी पड़ रहा है। यही कारण है कि छोटे किसान खेती कार्य छोड़ कर काम की तलाश में हर वर्ष दूसरे राज्य पलायन कर रहे हैंं।
राज्य के लगभग 22 लाख किसानों को केन्द्र में रख बनाई गई गोधन न्याय योजना को लागू करने से पहले गांवों में जानवरों के लिए गौठानों का निर्माण अभियान चलाया गया। इस अभियान में तकरीबन 2200 से भी ज्यादा गौठानों का निर्माण कराया जा चुका है। कई गांवों में निर्माण चल रहा है।इन्हींं गौठानों को आर्थिक गतिविधियों के केन्द्र के रूप में विकसित किया जाएगा।यहाँ लघु एवं मझोले किसान ज्यादा हैं। बड़े किसानों की संख्या बहुत कम है। सरकारी अनुमान के मुताबिक राज्य के 5 हजार गौठानों में गोधन न्याय योजना के तहत गोबर खरीदी होगी और खाद बनाने का काम होगा। इस काम से तकरीबन पांच लाख लोगों को गांव में ही रोजगार मिलेगा। दो रुपये के निर्धारित दर पर खरीदे गए गोबर से बनाए खाद की बिक्री गौठान सहकारी समितियां करेंंगी ।खाद( वर्मी कम्पोस्ट )बनाने और कम्पोस्ट की मार्केटिंग की पूरी चैन विकसित की जा रही है। इस पूरी प्रक्रिया के संचालन में स्व-सहायता समूहों की महिलाओं के साथ ही ग्रामीण युवाओं को भी जोड़ा जा रहा है। गोधन न्याय योजना का लाभ ऐसे मजदूर परिवारों को भी मिलेगा जिनके पास खेती की जमीन नहीं है, लेकिन दो-तीन पशु हैं। इस योजना में गांव के चरवाहों को भी शामिल किया गया है। छोटे पशुपालकों को भी गोबर बिक्री से माह में 2 से 3 हजार रुपये कीआमदनी हो जाएगी। मजबूत ग्रामीण अर्थव्यवस्था से बाजार भी उठेगा।
राज्य में तकरीबन एक करोड़ से भी ज्यादा पशुधन हैं। छोटे किसानों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण पशुओं के लिए चारे की व्यवस्था नहीं कर पाते हैं , इसलिए किसान इन्हें खुले में छोड़ देते हैं।गोबर खरीदने के निर्णय से पशुपालक अपने पशुओं की देखभाल करेंगे। गोबर के आय से किसानों को चारे का इंतजाम करने में आसानी होगी। जब गाय को पर्याप्त चारा मिलेगा तो दूध उत्पादन भी बढ़ेगा। बछड़े जब बड़े होकर बैल होंगे तो खेतों की जोताई कर ट्रेक्टर आदि का खर्च से भी किसान बचेंगे। पशुओं को खुले में छोड़ने से सिंचाई सुविधा वाले इलाकों के किसान जो अभी दूसरी फसल नहीं ले रहे थे उनकी समस्या भी दूर हो जाएगी।