श्रीकृष्ण की बांसुरी की धुन सुनकर गायों के मुग्ध होने की कथा आपने सुनी होगी। उसी तर्ज पर राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (एनडीआरआइ) में काम चल रहा है। यहां गायों को तनाव मुक्त रखने के लिए म्यूजिक थेरेपी दी जा रही है। इन गायों को प्रतिदिन आठ घंटे बांसुरी का संगीत (रिकार्डेड) सुनाया जाता है। बांसुरी की धुन बजते आंखें बंदकर सुनती हैं। इसके बाद मुग्ध होकर सामान्य से अधिक दूध देती हैं।
कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों पर जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव के आकलन एवं इसके निराकरण रणनीतियों के विकास के लिए राष्ट्रीय योजना ‘जलवायु समुत्थानशील कृषि पर राष्ट्रीय पहल” (नेशनल इनिशिएटिव इन क्लाइमेट रेजिलिएंट एग्रीकल्चर) यानी निकरा के क्रियान्वयन को फरवरी, 2011 में स्वीकृति प्रदान की गई थी। इस स्टडी प्रोजेक्ट में आ रहे परिणाम से विज्ञानी उत्साहित हैं। उनका मानना है कि यह न सिर्फ कृषि बल्कि दुधारू पशुओं के शारीरिक विकास उनके दुग्ध उत्पादन में वृद्धि व उनकी गुणवत्ता कायम रखने में भी प्रभावी होगा।
जलवायु परिवर्तन का दुधारू मवेशियों पर बेहद प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, जिसे देखते हुए एनडीआरआइ में वरिष्ठ विज्ञानी डा. आशुतोष ने इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया। उन्होंने बताया कि डेढ़ माह से चल रहे प्रयोग में मुख्य रूप से साहीवाल और थारपारकर नस्लों की 20 माह तक की 36 गायों पर अध्ययन किया जा रहा है। इसके तहत उनकी आहारचर्या, विकास, शरीर के तापमान से लेकर हार्मोन में बदलाव तक पर बारीकी से नजर रखने के साथ डाटा जुटाया जा रहा है। गोशाला में लगे स्पीकर के जरिये प्रतिदिन आठ घंटे तक बांसुरी का अत्यंत मधुर संगीत सुनाया जाता है। सभी गाय न केवल इन्हें पूरी तन्मयता से सुनती हैं, बल्कि तनाव मुक्त रहने से उनकी ग्रोथ व दुग्ध उत्पादन में शानदार नतीजे मिल रहे हैं। जल्द इसकी विस्तृत रिपोर्ट तैयार की जाएगी, ताकि इस शोध के आधार पर मवेशियों को बेहतर पोषण देने के साथ जलवायु परिवर्तन से जुड़ी समस्याओं से बचाया जा सके।