पटना में 23 जून को हुई विपक्ष की बैठक का लक्ष्य अभी साफ नहीं रहा। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल अध्यादेश को लेकर चिन्तित हैं तो भाकपा मणिपुर हिंसा को लेकर।नीतीश कुमार की नज़र घुमा फिरा पीएम की उम्मीदवारी पर है या ताड़ से गिर कर खजूर में अटके तो यूपीए का संयोजक पद मिल जाए। लालू की चाहत है कि नीतीश मुख्यमंत्री पद छोड़ें तो पुत्र तेजस्वी यादव की ताजपोशी हो। यह भाजपा हटाओ का एजेंडा नहीं है। सबका अपना-अपना एजेंडा है। कल की बैठक सिर्फ़ औपचारिक है।
विपक्ष कल तक अपनी डफली अपना राग गा रहा था। एकता की यह एक शुरुआत भर है। सीट शेयरिंग में असल चेहरा सबका दिख जाएगा। संविधान, सेक्युलरिज़्म की हिफ़ाज़त और भाजपा को सत्ता से बेदख़ल करने के लिए कौन कितना पीछे हटने को तैयार रहता है। प्रधानमंत्री पद पर ज़्यादा माथापच्ची नहीं है। हाल के दिनों में कांग्रेस की क्रेडबिलटी जिस तरह बढ़ी है, राहुल गांधी को इग्नोर करना आसान नहीं होगा।
विपक्षी एकता की इस औपचारिक बैठक से पहले भारतीय जनता पार्टी हमलावर हो गई है। बैठक विपक्ष की तरह वह भी होर्डिंग और पोस्टर में ताक़त झोंक रही है।
विपक्ष का असल दिक़्क़त यह है कि अभी सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है। बंगाल में तृणमूल और वामपंथ को एक गठबंधन में लाना आसान नहीं है। दिल्ली और पंजाब में आप पार्टी को साधना भी कठिन कार्य है। बिहार में जदयू और राजद की महत्वाकांक्षा कम नहीं है। राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की बढ़ती लोकप्रिता को देखते हुए क्षेत्रीय पार्टियों को अपनी थैली में रहना होगा। अब स्तिथि पलट चुकी है। कांग्रेस के सहारे ही क्षेत्रीय दल लोकसभा पहुंच सकते हैं, इसलिए कांग्रेस को सम्मान देना होगा। वन बाइ वन लड़ाई हुई तो निश्चित रूप से नरेन्द्र मोदी की सत्ता में वापसी की राहें मुश्किल हो जाएगी। यह भाजपा बख़ूबी समझ रही है।