जीवन बीमा के मामलों में यही माना जाता है कि अगर मौत का कारण आत्महत्या है तो क्लेम नहीं मिलेगा। दरअसल ऐसी धारणा का कारण लोग ध्यान से बीमा की श्र्ते नहीं पढ़ते। मगर वास्तव में ऐसा नहीं है। सामान्यतया पालिसी में आत्महत्या से हुई मौत पर बीमा क्लेम का भुगतान न किये जाने की शर्त के साथ एक अवधि भी दी जाती है। अगर उस अवधि के बाद बीमा कराने वाले व्यक्ति की आत्महत्या से मौत हुई है तो पॉलिसी में नामित व्यक्ति क्लेम का दावा कर सकता है। गत दिनों एक मामले में रिलायंस लाइफ इंश्योरेंस कंपनी को आत्महत्या के मामले में क्लेम का भुगतान करने का आदेश हुआ है। जिला उपभोक्ता फोरम ने बीमा की शर्त में दी गई 12 महीने की अवधि के बाद आत्महत्या से मौत के मामले में बीमा कंपनी को क्लेम के 1348380 रुपये ब्याज सहित अदा करने का आदेश दिया है।
आत्महत्या के मामले में क्लेम का यह केस छत्तीसगढ़ का है। दिलीप कुमार सोनी ने रिलायंस लाइफ इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड से 28 सितंबर 2012 को पॉलिसी ली और उसका एक लाख रुपये प्रीमियम अदा किया। दिलीप सोनी प्रीमियम नियमित भरते थे। तीन जून 2014 को दिलीप सोनी चित्रकोट की इंद्रावती नदी में कूद गए जिससे उनकी मौत हो गई। उनकी पत्नी ऊषा सोनी ने परमानेंट अम्बुड्समेन कोर्ट में बीमा दावा दाखिल किया। जहां कंपनी ने क्लेम देने की बात कही और सारे दस्तावेज ले लिए लेकिन क्लेम नहीं दिया। मामला जिला उपभोक्ता फोरम पहुंचा।
जिला फोरम ने बीमा दावे की मांग पर कंपनी को नोटिस जारी किया लेकिन कंपनी फोरम में पेश नही हुई। जिला फोरम ने मई 2019 को दिए आदेश में कंपनी को न सिर्फ ब्याज सहित बीमा की रकम देने का आदेश दिया, बल्कि मानसिक और आर्थिक पीड़ा का 20,000 रुपये मुआवजा और 2500 रुपये मुकदमा खर्च भी देने को कहा। आदेश को कंपनी ने राज्य आयोग में चुनौती दी जहां से याचिका खारिज होने के बाद वह राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग पहुंची थी। कंपनी ने दलील दी कि उसे शिकायत की प्रति नहीं दी गई। साथ ही कहा कि बीमा का क्लेम नहीं मिल सकता क्योंकि मौत का कारण आत्महत्या है। राष्ट्रीय आयोग ने जिला फोरम के आदेश के अंश को उद्धत करते हुए ये दलीलें ठुकरा दीं और कहा कि फोरम ने हर पहलू पर विचार किया है। फोरम ने दर्ज किया है कि नोटिस सर्व होने के बावजूद बीमा कंपनी की ओर से कोई पेश नहीं हुआ। कंपनी की ओर से किसी के पेश न होने पर भी और शिकायतकर्ता द्वारा दुर्घटना में मौत की बात कहे जाने के बावजूद मौजूद सुबूतों को देखने के बाद फोरम ने तय किया कि मौत का कारण आत्महत्या है लेकिन शिकायतकर्ता राहत पाने की हकदार है।
फोरम ने कहा था कि दिलीप सोनी को 28 सितंबर 2012 को पालिसी जारी हुई। शर्त के मुताबिक पालिसी जारी होने के 12 महीने के भीतर आत्महत्या होने पर क्लेम नहीं मिल सकता था। जिला फोरम ने कहा कि दिलीप सोनी ने पालिसी जारी होने के एक साल आठ महीने और छह दिन बाद 3 जून 2014 को आत्महत्या की थी। ऐसे में 12 महीने के भीतर आत्महत्या पर क्लेम न मिलने की श्ार्त का उल्लंघन नहीं हो रहा है। सोनी ने पालिसी लेते वक्त पहला प्रीमियम दिया उसे अगला प्रीमियम 28 सितंबर 2013 को देना था जो कि उसने नहीं दिया और दूसरा प्रीमियम 25 फरवरी 2014 को दिया जिसकी रसीद पेश्ा की गई थी। फोरम ने कहा कि इस हिसाब से सोनी की मौत के दिन 3 जून 2014 को पॉलिसी प्रभावी थी इसलिए पत्नी बीमा दावे की हकदार हैं। आयोग ने कंपनी पर 1.5 लाख का जुर्माना लगाते हुए 75000 रुपये श्ािकायतकर्ता को देने और बाकी रकम एनसीडीआरसी के लीगल एड फंड में जमा कराने का आदेश्ा दिया है।