श्री अमरनाथ की पवित्र गुफा के पास बादल फटने से हुई तबाही को 26 साल पहले हुई त्रासदी का सबक भूलने की कीमत चुकानी पड़ी हैा दरअसल, 26 साल पहले अगस्त 1996 में हुई उस त्रासदी में करीब 242 श्रद्धालुओं ने अपनी जान गंवाई थी। इस त्रासदी में मरने वालों की संख्या भले ही उससे कहीं कम है, लेकिन इसने तीर्थयात्रा को पूरी तरह सुरक्षित और प्राकृतिक आपदा से निपटने की तैयारियों के सरकारी दावों की पोल खोलने के साथ यह साबित कर दिया है कि नीतिश सेन कमेटी की सिफारिशों की उपेक्षा किसी भी समय समय पर त्रासदी का कारण बन सकती है।
1996 में पवित्र गुफा के पास और यात्रा मार्ग पर ग्लेशियर फटने, भूस्खलन होने से करीब 242 लोगों की मौत हुई थी। इनमें श्रद्धालुओं के साथ कई स्थानीय सेवा प्रदात्ता भी थे। वर्ष 1996 में सरकार को सिर्फ 70 हजार से एक लाख तक श्रद्धालुओं के आगमन की उम्मीद थी। यह सही है कि उस समय यात्रा मार्ग मौजूदा यात्रा मार्ग की तरह सुविधाजनक नहीं था। उम्मीद से ज्यादा श्रद्धालुओं का आना और मोसम का अचानक बिगड़ जाना ही त्रासदी का कारण बना था।
वर्ष 1996 में हुई त्रासदी के बाद गठित नीतिश सेन समिति ने अपनी रिपोर्ट में तत्कालीन यात्रा प्रबंधन पर कई सवाल उठाए थे। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि पवित्र गुफा के दोनों यात्रा मार्गाें की भौगोलिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए सात हजार से ज्यादा श्रद्धालुओं को एक दिन में नहीं भेजा जाना चाहिए। दोनों रास्तों से 3500-3500 श्रद्धालुओं को ही भेजने की सिफारिश की गई थी। उन्होंने यात्रा में श्रद्धालुओं की संख्या करीब एक लाख तक सीमित रखने को कहा था और यात्रा वधि 30 दिन तय की थी। उस समय श्राइन बोर्ड नहीं था। श्राइन बोर्ड का गठन वर्ष 2000 में हुआ है।
कालांतर यात्रा का स्वरूप और सुविधांए बदली हैं। नीतिश सेन रिपोर्ट की सिफारिशों के विपरीत आज इस यात्रा में रोजाना 10 हजार से ज्यादा श्रद्धालु दोनों यात्रा मार्गाें से पवित्र गुफा के लिए जा रहे हैं। पिछले कुछ वर्षाें के दौरान यात्रा के दौरान किसी दिन यह संख्या 20 हजार भी रही है। इसके अलावा हेलीकाप्टर का प्रयोग भी लगातार बढ़ रहा है। पवित्र गुफा समेत पूरे यात्रा मार्ग पर श्रद्धालुओं की सुविधा के नाम पर विभिन्न प्रकार के निर्माण भी हुए हैं। सुविधाओं के आधार पर यात्रियों की संख्या प्रतिदिन 15 हजार तय की गई है।
यात्रा से जुड़े एक अधिकारी ने कहा कि बालटाल से पवित्र गुफा की तरफ जाने वाले रास्ते पर आप किसी भी समय नजर दौड़ाओ तो आपको एक जुलूस नजर आएगा। कई जगह रास्ता सिर्फ एक ही व्यक्ति के गुजरने लायक होता है और ऐसे हालात में यात्र रोके जाने पर स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है।
इस बीच, पवित्र गुफा से लौटे एक श्रद्धालु नरेश कुमार ने बताया कि मैने आज की त्रासदी का वीडियो देखा है। इसमें बरबाद हुए कई तंबु और लंगर जिस जगह स्थापित थे, वहां नहीं होने चाहिए थे। प्रशासन ने उन्हें एक नाले के पास स्थापित कैसे करने दिया,यह समझ से परे है। यह तो बाबा बर्फानी की मेहरबानी ही है जो बाढ़ चंद मिनट तक रही,अन्यथा नुक्सान बहुत ज्यादा होना था।
कश्मीर से संबधित एक पर्यावरणविद्ध ने कहा कि यात्रा मार्ग और पवित्र गुफा की भौगोलिक परिस्थितियों और पर्यावरण से खिलवाड़ महंगा साबित हो रहा है। पवित्र गुफा और यात्रा मार्ग पर कई ग्लेशियर सिकुड़ चुके हैं या फिर लापता हो चुके हैं। उन्होंने कह कि मरने वालों की संख्या 13 नहीं 1300 हो सकती थी,अगर समय रहते बचाव कार्य के लिए वहां राहत कर्मी मौजूद न होते। यह स्थिति क्यों आए,इस पर विचार करना चाहिए।