EKhabri ( प्रीति शुक्ला)
पिछले दिनों जब मैं अपनी दिवाली की खरीदारी के लिऐ बाजार में घूम रही थी तो मुझे एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात का एहसास हुआ।
दीया, खोई, बतशा, बंधनवार आदि बेचने वाले सड़क किनारे खड़े छोटे दुकानदारों की आंखों में आस है कि इस बार शायद उनका अच्छा समय होगा। कि वे भी दिन या साल के लिए बिक्री का नया रिकॉर्ड बना सकेंगें। वे भी अपने बच्चों के लिए कुछ अच्छा करने में सक्षम होंगे।
मैंने यह भी महसूस किया कि स्क्रीन पर स्क्रॉल करके और रिव्यूसज की जाँच करने के बजाय मुझे जो चाहिए उसे सामने से देखने और चुनने में ज्यादा मज़ा आता है। साथ ही बाजार की बातचीत, मोलभाव और हलचल उत्सव का अहसास देती है।
इसलिए मैंने लोकल जाने का फैसला किया। मैं ऑनलाइन शॉपिंग के खिलाफ नहीं हूं लेकिन मुझे एहसास हुआ कि मैं दोनों के बीच संतुलन हासिल कर सकती हूं। मुझे लगता है कि आनलाइन के बजाऐ स्थानीय विक्रेताओं से खरीदारी ज्यादा लोगो को मुस्कान और खुशी देगी।