यूँ तो प्रत्येक महीने में केवल दो एकादशी तिथि पड़ती है लेकिन किन्ही महीनों में यह एकादशी तिथि 2 से बढ़कर 3 भी हो जाती है। ऐसा ही कुछ हुआ है इस वर्ष नवंबर के महीने में, जहाँ तीन एकादशी तिथियों का शुभ संयोग बना। नवंबर महीने की तीसरी और आखिरी एकादशी है उत्पन्ना एकादशी, जिसे बहुत सी जगहों पर उत्पत्ति एकादशी भी कहा जाता है।
उत्पन्ना एकादशी या उत्पत्ति हिंदू कैलेंडर के अनुसार मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष के ग्यारहवें दिन पड़ती है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार उत्पन्ना एकादशी नवंबर या दिसंबर के महीने में पड़ती है। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है और उत्पन्ना एकादशी के बारे में ऐसी मान्यता है कि इस दिन का व्रत करने और सही विधि से पूजा आदि करने से व्यक्ति के पिछले और इस जन्म के सभी पाप दूर होते हैं और शुभ फल की प्राप्ति होती है।
उत्पन्ना एकादशी तिथि और मुहूर्त
30 नवंबर, 2021 (मंगलवार)
उत्पन्ना एकादशी व्रत मुहूर्त
उत्पन्ना एकादशी पारणा मुहूर्त :07:37:05 से 09:01:32 तक 1, दिसंबर को
अवधि :1 घंटे 24 मिनट
हरि वासर समाप्त होने का समय :07:37:05 पर 1, दिसंबर को
उत्पन्ना एकादशी महत्व
कई हिंदू ग्रंथों जैसे भविष्य पुराण आदि में उत्पन्ना एकादशी के महत्व को बताया गया है। इस दिन का महत्व अन्य शुभ हिंदू त्योहारों और संक्रांति जैसे महत्वपूर्ण व्रत और त्यौहार के समान माना गया है। जहां लोग हिंदू तीर्थों के पवित्र जल में डुबकी लगाते हैं। माना जाता है कि कोई भी व्यक्ति उत्पन्ना एकादशी व्रत का पालन करता है उसे अपने पिछले जन्म और इस जन्म के पापों से मुक्ति मिलती है और मृत्यु के बाद उस व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त होता है।
ऐसा माना जाता है कि मृत्यु के बाद ऐसे व्यक्ति (जो उत्पन्ना एकादशी का व्रत करते हैं) वो सीधे भगवान विष्णु के अधिष्ठाता के पास जाता है, जिसे वैकुंठ कहा जाता है। इसके अलावा जो व्यक्ति 1000 गायों का दान करते हैं उन्हें ढेरों आशीर्वाद प्राप्त होते हैं। यदि कोई व्यक्ति उत्पन्ना एकादशी का व्रत करता है तो उससे तीन महत्वपूर्ण हिंदू देवताओं अर्थात ब्रह्मा, विष्णु, महेश के व्रत के बराबर माना जाता है। इसीलिए उत्पन्ना एकादशी का हिंदू धर्म में विशेष महत्व बताया गया है और लोग श्रद्धा पूर्वक और नियम के साथ इस व्रत का पालन भी करते हैं।
इसके अलावा उत्पन्ना एकादशी का महत्व इस बात से भी समझा जा सकता है कि इस व्रत में जप,तप और दान करने से व्यक्ति को अश्वमेध यज्ञ के बराबर फल की प्राप्ति होती है। इसके अलावा कहा जाता है जो लोग एकादशी का व्रत रखना चाहते हैं उन्हें उत्पन्ना एकादशी से शुरुआत करनी चाहिए। उत्पन्ना एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु के साथ-साथ विष्णु प्रिया मां लक्ष्मी का भी आशीर्वाद जीवन में प्राप्त होता है।
क्यों मनाते हैं उत्पन्ना एकादशी?
उत्पन्ना एकादशी राक्षस मुरासुर पर भगवान विष्णु की विजय का प्रतीक माना जाता है। कुछ हिंदू किविदंतियों के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इसी एकादशी तिथि पर एकादशी माता का जन्म हुआ था। उत्पन्ना एकादशी का यह शुभ दिन भारत के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग महीनों के दौरान मनाया जाता है। उत्तर भारत में यह मार्गशीर्ष महीने में मनाया जाता है, जबकि गुजरात, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक राज्यों में कार्तिक माह के दौरान उत्पन्ना एकादशी मनाई जाती है।
वहीं तमिल कैलेंडर के अनुसार उत्पन्ना एकादशी कार्तिगाई मासम’ या ‘अप्पासी’ में आती है, और मलयालम कैलेंडर के अनुसार यह वृश्चिक मासम में पड़ती है या थुलम के महीने में मनाई जाती है। हालांकि हर जगह पर उत्पन्ना एकादशी के दिन भगवान विष्णु और महादेव जी की ही पूजा का विधान होता है।