बालोद। जनपद पंचायत गुरुर इन दिनों कमीशन खोरी का गढ़ बनता जा रहा है। छोटे-छोटे कार्यों के लिए यहां के कुछ निचले स्तर के अधिकारी और कर्मचारी सरपंचों से कमीशन की मांग कर रहे हैं। हद तो तब हो रही है जब सरकारी काम होने के बाद उनके भुगतान को भी रोक दिया जा रहा है और बगैर कमीशन दिए वह भुगतान नहीं किया जा रहा है। सीधे-सीधे सरपंचों या उनके प्रतिनिधियों से पैसों की डिमांड की जा रही है इससे कई सरपंच और उनके प्रतिनिधि खुद को प्रताडि़त महसूस कर रहे। कुछ सरपंच ब्लॉक में ऐसे भी हैं जो पहली बार सरपंच बने हैं और बहुत सीधे-साधे हैं जो इस तरह के गड़बड़ी में कभी नहीं रहते ना कभी उनसे इस तरह के मामलों से सामना होता है। ऐसे ही लोगों को सीधे-सीधे अधिकारी कमीशन मांग रहे हैं तो वह हतप्रभ है और हैरान भी है कि आखिर यह क्या चल रहा है। नाम प्रकाशित न करने की शर्तों पर कुछ सरपंचों व उनके प्रतिनिधियों ने बताया कि खासतौर से गौठान निर्माण व अन्य कामों के बाद भुगतान के सिलसिले में कमीशन का खेल जमकर चल रहा है। जब काम हो गया है और शासन से पैसा आ गया है तो उन्हें पंचायत के खाते में ट्रांसफर करने के लिए भी आनाकानी की जा रही है। जब इस संबंध में जनपद जाते हैं तो वहां के अधिकारी कर्मचारी हमें 5 से 7 प्रतिशत पहले नगद पैसा देने की मांग करते हैं जिसके बाद ही भुगतान किया जाता है। क्योंकि पंचायत खुद क्रियान्वयन एजेंसी होती है काम वही कराए रहती है इसलिए जो निर्माण कार्य में माल सप्लाई किए रहते हैं उनका बकाया भी पंचायत के द्वारा देना रहता है और जब तक सरकारी पैसा नहीं आता वह भुगतान भी रुका रहता है या कई बार सप्लायर के दबाव के चलते सरपंच य स्वयं का पैसा फंसाए रहते हैं इसलिए भुगतान समय पर होना जरूरी होता है। शासन से पैसा आता है तो उन्हें जल्द से जल्द हासिल करना भी जरूरी है। इसलिए जनपद पंचायत आते हैं पर उन्हें यहां आने के बाद उल्टा और कमीशन की मांग की जाती है। जिससे सरपंच त्रस्त हो रहे हैं। सरपंच संघ की बैठक में भी यह मामला उठ चुका है कुछ इंजीनियरों की शिकायत भी सामने आ चुकी है जो सरपंच से कमीशन की मांग करते हैं। बैठकों में इसका विरोध भी हो चुका है और समय-समय पर सरपंच संघ द्वारा दिए जाने वाले ज्ञापन में भी इस बात को लेकर उल्लेख किया जाता है कि जनपद में कमीशन खोरी बंद हो। सरकारी निर्माण कार्य के भुगतान के लिए कमीशन का दबाव ना बनाया जाए। पर भ्रष्टाचार और कमीशन है कि रुकने का नाम नहीं लगा है। कांग्रेस सरकार में जहां सब अच्छा होने की उम्मीद थी वहां भी यह कमीशन का कीड़ा घुसा हुआ है और इससे नए नवेले जनप्रतिनिधि खासे परेशान हो रहे हैं जिन्हें इस तरह के कार्यों का कोई अनुभव नहीं रहता है। कई ऐसे सरपंच भी चुनाव जीत कर आए हैं जो गरीब या मध्यम परिवेश से भी हैं। उनके लिए लाखों का भुगतान करवाना या करना भी बड़ी बात होती है। शासन की योजना के तहत निर्माण करवा तो देते हैं लेकिन शासन से पैसा नहीं निकलवा पा रहे हैं। देर सबेर शासन से तो पैसा जनपद को आ ही जाता है लेकिन जनपद से पंचायत तक पहुंचने में कमीशन रोड़ा बन रहा है। मजबूरी में कुछ पंचायत के सरपंच अधिकारियों की मांग भी पूरी करने लगे हैं ताकि कम से कम भुगतान तो हो जाए। पर अंतत: सरपंच को इस बात पर नाराजगी व आक्रोश भी पनपने लगा है कि आखिर जनपद के अधिकारी अपनी हरकतों से कब बाज आएंगे। खासतौर से मनरेगा में कमीशन खोरी हावी है इसके अलावा अन्य मद से जो काम होते हैं उनका भी भुगतान रोक दिया जाता है और भुगतान तभी जारी किया जाता है जब संबंधित अधिकारी कर्मचारी की डिमांड पूरी होती है।