नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी सेंट्रल विस्टा परियोजना को हरी झंडी दे दी है। न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने इस पर फैसला सुनाया। इस पीठ ने पिछले साल पांच नवंबर को इन याचिकाओं पर सुनवाई पूरी करते हुए कहा था कि इन पर फैसला बाद में सुनाया जाएगा। हालांकि इसी दौरान न्यायालय ने सात दिसंबर को केन्द्र सरकार को सेंट्रल विस्टा परियोजना के आयोजन की अनुमति दे दी थी। सरकार ने कोर्ट को आश्वासन दिया था कि इस परियोजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं का निपटारा होने तक निर्माण कार्य या इमारतों को गिराने या पेड़ों को काटने जैसा कोई काम नहीं किया जाएगा। परियोजना का शिलान्यास कार्यक्रम 10 दिसंबर को आयोजित हुआ था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद भवन की नयी इमारत की आधारशिला रखी थी।
क्या है योजना
इस परियोजना की घोषणा पिछले साल सितंबर महीने में हुई थी, जिसमें एक नए त्रिभुजाकार संसद भवन का निर्माण किया जाना है। इसमें 900 से 1200 सांसदों के बैठने की क्षमता होगी। इसके निर्माण का लक्ष्य अगस्त 2022 तक है, जब देश स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मनाएगा। इस परियोजना के तहत साझा केंद्रीय सचिवालय 2024 तक बनने का अनुमान है। ये परियोजना लुटियंस दिल्ली में राष्ट्रपति भवन से लेकर इंडिया गेट तक तीन किलोमीटर लंबे दायरे में फैली हुई है।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सेंट्रल विस्टा परियोजना के लिए जमीनी स्तर पर किसी प्रकार का बदलाव प्राधिकारी अपनी जोखिम पर करेंगे। न्यायालय ने ये भी स्पष्ट कर दिया था कि इस परियोजना का भविष्य उसके फैसले पर निर्भर करेगा। इस मामले में सुनवाई के दौरान केंद्र ने कोर्ट में तर्क दिया था कि परियोजना से उस धन की बचत होगी, जिसका भुगतान राष्ट्रीय राजधानी में केंद्र सरकार के मंत्रालयों के लिए किराए पर परिसर लेने के लिए किया जाता है। केंद्र ने ये भी कहा था कि नए संसद भवन का निर्णय जल्दबाजी में नहीं लिया गया और परियोजन के लिए किसी भी तरह से किसी भी नियम या कानून का कोई उल्लंघन नहीं किया गया।
-राजीव सूरी समेत अनेक व्यक्तियों ने दी थी कोर्ट में चुनौती
कोर्ट में राजीव सूरी समेत अनेक व्यक्तियों ने इस परियोजना को चुनौती दी थी। परियोजना के लिए भूमि उपयोग में बदलाव, पर्यावरण मंजूरी, इसके लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र देने सहित विभिन्न मंजूरियों पर भी इन याचिकाओं में सवाल उठाए गए हैं। केंद्र ने परियोजना के लिए सलाहकार का चयन करने में कोई मनमानी या पक्षपात करने से इंकार करते हुए कहा था कि सिर्फ इस दलील पर परियोजना को रद्द नहीं किया जा सकता कि सरकार इसके लिए बेहतर प्रक्रिया अपना सकती थी।