हत्या के एक मामले में दोषी को आठ साल कैद की सजा काटने के बाद जेल से इस आधार पर रिहाई मिली है कि वारदात के वक्त वह नाबालिग था। यह घटना 1986 की है और सजायाफ्ता की उम्र इस समय 52 साल की है।
यह मामला उत्तर प्रदेश के बागपत जिले का है। हत्या की यह वारदात 19 अगस्त, 1986 को हुई थी। निचली अदालत ने 1990 में आरोपी को बरी कर दिया था। 2007 में हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए आरोपी को हत्या का दोषी ठहराते हुए उसे उम्र कैद की सजा सुनाई थी। 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने भी हाई कोर्ट के फैसले को बहाल रखते हुए दोषी को उम्र कैद की सजा काटने के लिए जेल भेज दिया था। हैरानी का बात यह है कि मामले की सुनवाई के दौरान कभी भी आरोपित की तरफ से नाबालिग होने का मुद्दा नहीं उठाया गया था।
जस्टिस संजय किश्ान कौल की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष याचिकाकर्ता सजायाफ्ता कैदी के वकील ने बताया कि जिस वक्त वारदात हुई थी, उस समय दोषी नाबालिग था। इसके लिए उन्होंने उत्तर प्रदेश्ा सरकार द्वारा जारी जन्म प्रमाण पत्र, हाई स्कूल की मार्कशीट की कापी और बागपत जिले के एआरटीओ दफ्तर से उसके नाम जारी ड्राइविंग लाइसेंस पीठ के सामने पेश्ा किया। इसके मुताबिक उसकी जन्मतिथि 10 अगस्त, 1970 है। इस तरह वारदात के समय उसकी उम्र 16 साल थी। वकील ने पीठ को यह भी बताया कि श्ाीर्ष अदालत के आदेश्ा पर बागपत जिले के किशोर न्याय बोर्ड ने इस मामले में दोषी की मां और प्रमाण पत्रों का सत्यापन करने वाले उसके स्कूल के प्रिंसिपल के बयानों की पड़ताल की। बोर्ड ने उसके नाबालिग होने की पुष्टि की। वकील ने कहा कि वारदात के समय उनका मुवक्किल नाबालिग था, इसलिए उसे अधिकतम तीन साल कैद की सजा हो सकती है, जबकि वह आठ साल कैद की सजा काट चुका है इसलिए उसकी तत्काल रिहाई होनी चाहिए।