रायपुर। रायपुर के भनपुरी इलाके में रहने वाली दामिनी सेन भी देशभर की बहनों की तरह ही रक्षाबंधन मना रही हैं। लेकिन जन्म से ही दिव्यांग इस बहन की राखी थोड़ा अलग है। दामिनी के हाथ नहीं है, इसके चलते जिंदगी मुश्किल है, लेकिन वह हौसलों से रिश्तों को निभा रही है। दामिनी अपने भाई को पैरों से राखी बांधती है। पैरों की अंगुलियों से ही राखी पर गांठ लगाती है। भाई को मिठाई खिलाती है और फिर तिलक लगाने के बाद आरती उतारती हैं। २3 साल की दामिनी ने पोस्ट ग्रेजुएशन तक पैरों की मदद से ही किया है। लिखना, घर का बाकि काम करना, खाना बनाना, सब दामिनी पैरों से करती हैं। दामिनी कहती हैं, जो मेरे पास नहीं उसका गम नहीं है, जो है उसी को ताकत बनाकर जिंदगी जीती हूं। दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करती हूं। रक्षाबंधन के दिन दामिनी अपने भाई और बहन के साथ ही 5 ममेरे भाइयों को भी राखी बांधती हैं। भाइयों से मिलने वाले तोहफे उनको एक्साइट करते हैं। बाजार जाकर फेस्टिवल से जुड़ी शॉपिंग भी दामिनी खुद करती हैं।
8 लाख रुपए के इनामी सरेंडर नक्सली की कलाई पर पहली बार सजी राखी
छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में बहन के प्यार ने 8 लाख रुपए के इनामी खूंखार नक्सली दुर्गेश सोरी का जीवन बदल दिया। बहन के कहने पर उसने साल 2020 में हिंसा का रास्ता छोड़ दिया। इसके बाद यह रक्षाबंधन उसके लिए खास हो गया। 28 साल बाद पहली बार उसकी कलाई पर रक्षा की डोर सजी, हालांकि यह डोर सरेंडर करने वाली 5 लाख रुपए की इनामी एक महिला नक्सली जोगी ने बांधी। दुर्गेश को सरेंडर कराने वाली बहन ही उसकी कलाई पर राखी नहीं बांध सकी। उसे डर है कि कहीं बहन के बारे में पता चलने पर नक्सली उसे परेशान न करें।