औषधीय पौधों की खोज यात्रा : युवा विद्यार्थियों के लिए बुजुर्ग वैद्यों ने खोले परम्परागत चिकित्सा के कई राज

रायपुर। बच का उपयोग खूनी बवासीर में, आंतों के ट्यूमर के लिए हत्थाजोड़ी, सांसों की बीमारियों में भारंगी, सफेद और लाल प्रदर में शेर-दातौन, टूटी हड्डी जोड़ने के लिए डेरिया कांदा, मधुमेह में हजारदाना, सांप के काट पर जमरासी, उदरविकार में मरोड़फली, बवासीर में रासना जड़ी, सूजन दूर करने पुनर्नवा, हड्डी जोड़ने कोरपट, बच्चों के कृमि रोग में बायबिडंग और ऐसी अनेक वनस्पतियों की पहचान, उनके उपयोग का तरीका, उनके पनपने के स्थान आदि विभिन्न दुर्लभ जानकारियों से अवगत होते हुए वैद्यों के मन में ज्ञान को साझा करने का संतोष था, तो वनस्पति वैज्ञानिकों, शिक्षकों, विद्यार्थियों में इसे पाने की ललक थी।
छत्तीसगढ़ विज्ञान सभा तथा मध्यप्रदेश विज्ञान सभा द्वारा प्रसिद्ध टेक्सोनामिस्ट प्रोफेसर एम.एल. नायक के नेतृत्व में संयुक्त रूप से आयोजित औषधीय पौधों की खोजयात्रा में इस बार छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश तथा महाराष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों से आये 150 से अधिक लोगों ने भागीदारी की। यह यात्रा इस बार अमरकंटक की तराई में बसे नैसर्गिक संपदा के धनी ग्राम केवची को बेसकेंप बनाकर 1 से 3 अक्टूबर तक की गई। इसके तहत 1 अक्टूबर को इसका उद्घाटन करते हुए छत्तीसगढ़ विज्ञान सभा के अध्यक्ष प्रसिद्ध टेक्सोनामिस्ट प्रोफेसर एम.एल. नायक द्वारा औषधीय पौधों की जानकारी के महत्व को रेखांकित किया गया तथा युवा विद्यार्थियों को इनके अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण टिप्स दी गई। उन्होंने विभिन्न पौधों के चिकित्सा संबंधी ज्ञान के वेलिडेशन पर जोर दिया और तत्संबंधी अनुसंधान को गति देने विश्वविद्यालयों की भूमिका पर प्रकाश डाला। विज्ञान सभा के कार्यकारी अध्यक्ष विश्वास मेश्राम ने औषधीय पौधों की खोजयात्रा के अभी तक के सफर और अमरकंटक की वादियों तक के इस आयोजन के पहुंचने के बारे में बताया। उन्होंने जानकारी दी कि 1999 में महानदी तट से शुरू होकर यह यात्रा बस्तर में तिरिया-माचकोट, केशकाल, कुम्हानखार, झलियामारी, मांझिनगढ़ तथा टाटामारी, महासमुंद में देवधारा, कोरबा में चैतुरगढ़ और सतरेंगा, बालोद में डौंडीलोहारा, मंडला में घुघरी, छिंदवाड़ा में पातालकोट आदि के जंगलों से होते हुए यहां नर्मदा तट तक पहुंच गई है। कोरबा से आये वनस्पति विज्ञानी और इस यात्रा के संयोजक दिनेश कुमार ने जंगल में खोजयात्रा के दौरान बरतने वाली सावधानियां के बारे में अवगत कराया। उन्होंने सभी प्रतिभागियों को ग्रुप में रहकर ही जड़ी-बूटियों को खोजने की सलाह दी और अकेले जंगल में भटक जाने के खतरों से आगाह किया।
जंगल जाकर 40 से अधिक औषधीय पौधों की पहचान कर उनके उपयोग और रहवास पर जानकारी प्राप्त की
खोजयात्रा के दूसरे दिन 2 अक्टूबर को परम्परागत वैद्यों सुमेर सिंह, अवधेश कश्यप, निर्मल अवस्थी, अर्जुन वास, लोकनाथ सोना और वनस्पति वैज्ञानिकों प्रोफेसर एम एल नायक, दिनेश कुमार, गुलाब चंद साहू, डा. भुवन एम साहा, डा प्रज्ञा गिरादकर, डा. शारदा बाजीराव वैद्य, सु रेखा शर्मा, लक्ष्मी सिंह पैकरा, रानू राठौर, लाईफसाइंस एक्सपर्ट निधि सिंह, वेदव्रत उपाध्याय, कृषि वैज्ञानिक डा. अंबिका टंडन, शल्य चिकित्सक डा. कल्पना सुखदेवे, आयुर्वेद चिकित्सक डा. विवेक दुबे तथा डा. सीमा पांडेय के साथ सुबह जंगल जाकर 40 से अधिक औषधीय पौधों की पहचान कर उनके उपयोग और रहवास पर जानकारी प्राप्त की गई। दोनों ही चिकित्सकों तथा साथ आये वैद्यों ने जड़ी-बूटियों के औषधीय उपयोग एवं प्रभाव की विस्तारपूर्वक जानकारी दी। विज्ञान सभा का यह खोजदल दो पहाड़ियों को पार करता हुआ, विभिन्न उँचाइयों पर मिल रही औषधीय पौधों का डाक्यूमेंटेशन करता हुआ सोननदी के उद्गम स्थल तक गया और वापसी में चक्कर लगाता हुआ दूसरे रास्ते से लौटा। प्रतिभागियों द्वारा वापस लौटकर भोजन उपरांत केंवची के एमपीसीए क्षेत्र का भ्रमण किया गया और वहां मिले पौधों के गुणधर्मों की जानकारी प्राप्त की गई। खोजयात्रा दल ने वहां नैसर्गिक रुप से विद्यमान जैव-विविधता को देखा और सराहा। खोज दल के साथ इस बार बहुत से बच्चों ने भी ट्रेकिंग की।
तीसरे दिन इंदिरा गांधी नेशनल ट्राइबल यूनिवर्सिटी- अमरकंटक के हर्बल गार्डन का भ्रमण किया
खोजयात्रा के तीसरे दिन 3 अक्टूबर को इंदिरा गांधी नेशनल ट्राइबल यूनिवर्सिटी- अमरकंटक जाकर वहां के हर्बल गार्डन का भ्रमण किया गया। बायोटेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट के प्रोफेसरों के साथ जानकारियों का आदान-प्रदान किया गया, जहां विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. प्रकाश मणि त्रिपाठी द्वारा प्रतिभागियों के साथ उद्देश्यपूर्ण चर्चा की गई। उन्होंने विश्वविद्यालय द्वारा औषधीय पौधों के क्षेत्र में की जा रही परियोजनाओं की जानकारी दी और उनके वैज्ञानिक विश्लेषण के बारे में बताया।
बृहस्पति ग्रह के चार चंद्रमा – आयो, यूरोपा, गेनिमेड और केलिस्टो का अवलोकन कराया गया
ज्ञात हो कि पहले दिन बेसकेंप केंवची में भोजन के पश्चात रात्रि में स्काईवाचिंग के दौरान टेलिस्कोप से बृहस्पति ग्रह के चार चंद्रमा – आयो, यूरोपा, गेनिमेड और केलिस्टो का अवलोकन कराया गया तथा मृग, ययाति, वृषपर्वा, शर्मिष्ठा, धु्रव-मतस्य, महाश्व जैसे प्रमुख तारामंडलों की पहचान कराई गयी। इसी दिन कैंपफायर के दौरान लोगों ने अपनी गायन प्रतिभा का परिचय देकर माहौल को उत्साह से भरकर खुशनुमा बना दिया। इस आयोजन के लिए वन विभाग छत्तीसगढ़ तथा मध्यप्रदेश के साथ साथ एसडीएम कोटा आर.एल. भारद्वाज, एसडीएम पेंड्रा देवी सिंह उइके, डाइट पेंड्रा के प्राचार्य जे पी पुष्प, सहायक अभियंता जैन, हायर सेकेंडरी स्कूल के प्राचार्य पाटिल, जनपद पंचायत के सीईओ डा संजय शर्मा, हर्बल गार्डन अमरकंटक के वैद्य धुर्वे, रेवा फारेस्ट नर्सरी के गयादास बघेल, इंदिरा गांधी नेशनल ट्राइबल यूनिवर्सिटी बायोटेक्नोलॉजी विभाग के डीन त्रिपाठी, प्रोफेसर नवीन शर्मा तथा असिस्टेंट प्रोफेसर प्रशांत सिंह, सीएसईबी के कार्यपालन अभियंता अमर चौधरी तथा छत्तीसगढ़ वनौषधि वैद्य संघ के सचिव निर्मल अवस्थी का बहुत अच्छा सहयोग रहा जिसके लिये विज्ञान सभा द्वारा आभार ज्ञापित किया गया। इस यात्रा को सफल बनाने में मध्य भारत के प्रसिद्ध टेक्सोनामिस्ट प्रोफेसर एम. एल. नायक, विज्ञान सभा के एस. आर.आजाद, दिनेश कुमार, निधि सिंह, अंजू मेश्राम, मनीषा चंद्रवंशी, साईकलिस्ट मृणाल गजभिए, इंजीनियर सुमित सिंह, अविनाश यादव, वेदव्रत उपाध्याय, सूरज नंदे, हरकेश डडसेना, मनोज नायक, फ्रेंक आगस्टीन नंद, डा. वाय. के. सोना, रतन गोंडाने तथा विश्वास मेश्राम ने बहुत मेहनत की। विभिन्न वैज्ञानिक और शिक्षण संस्थाओं से मिले सहयोग के लिए आयोजक संस्थाओं द्वारा आभार जताया गया।

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