Ekhabri विशेष, पूनम ऋतु सेन। जांजगीर चाम्पा जिले में महानदी,लात और मांड नदी के त्रिवेणी संगम पर एक धार्मिक स्थल चंद्रपुर है, जहाँ चंद्रहासिनी और नाथलदाई मंदिर है यह छत्तीसगढ़ के निवासियों के लिए प्रमुख आस्था का केंद्र है। ऐसा कहा जाता है कि दोनों मंदिरों का दर्शन करने से ही माँ भक्तों की मुरादें पूरी करतीं हैं।
चंद्रहासिनी मंदिर
महानदी के तट पर स्थित प्रमुख धार्मिक स्थल चंद्रपुर पर मां चंद्रहासिनी देवी विराजित है। जिला मुख्यालय से लगभग 120 किलोमीटर जबकि रायगढ़ से 32 km की दूरी पर डभरा तहसील में यह मंदिर अवस्थित है। दूर-दूर से लोग यहां माता के दर्शन के लिए आते हैं। चैत्र एवं शारदीय नवरात्रि में यहां भक्तों का तांता लगा रहता है वहीं दोनों गुप्त नवरात्रि पर भी यहां विशेष पूजा कराई जाती है। देश में 52 शक्ति पीठ है ऐसी मान्यता है कि चंद्रहासिनी मंदिर भी उन शक्तिपीठों में से एक है।
माता का मुख चंद्रमा के समान सुंदर होने के कारण उनके इस स्वरूप को चंद्रहासिनी कहा गया और आंचलिक तौर पर इसे चंद्रसेनी मंदिर भी कहा जाता है।
चंद्रसेनी मां यहां के जमीदार राजा की कुलदेवी मानी जाती है यह वाराह रूपिणी है। चंद्रहासिनी माता का मुख चांदी सा चमकता है। स्थानीय निवासी चंद्रहासिनी देवी मंदिर परिसर को देव गुड़ी कहते हैं जबकि यहां का पुजारी ब्राह्मण ना होकर केवट जाति का होता है।
चारों और प्राकृतिक सुंदरता से घिरे इस स्थल की छटा देखते ही बनती है। एक और महानदी अपने स्वच्छ जल से मां के पैर पखारती है वहीं दूसरी ओर मांड नदी इस क्षेत्र के लोगों के लिए जीवनदायिनी है। पूर्व में यह मंदिर अपने पुराने स्वरूप में था परंतु यहां ट्रस्ट बनने के बाद इस मंदिर का पुनरुद्धार हो गया। मंदिर का मुख्य द्वार इतना आकर्षक एवं भव्य है कि श्रद्धालु इसकी तारीफ करते नहीं रुकते। मंदिर परिसर में अर्धनारीश्वर, महिषासुर वध, महाबलशाली पवन पुत्र,चार धाम, सर्प दंश , चीर हरण आदि प्रसंगों के अलावा अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां भी दर्शन के लिए बनायी गई हैं। इसके अलावा महाभारत काल का सजीव चित्रण मूर्तियों के द्वारा किया गया है ।
नाथलदाई मंदिर
चंद्रसेनी मंदिर से लगभग 1 किलोमीटर की दूरी पर नाथल दाई का मंदिर स्थित है यह मंदिर महानदी धारा के मध्य स्थित एक टापू में बना हुआ है इसे सरगुजहिन देवी का प्राचीन मंदिर भी कहा जाता है। यह सरगुजा की राज देवी मानी जाती है। एक जनश्रुति के अनुसार देवी सरगुजा के क्षेत्र को छोड़ते हुए किसी बात पर नाराज होकर रायगढ़ के रास्ते वहां से जा रही थी महानदी की बीच धारा में वह पहुंची थी कि उनकी भेंट चंद्रहासिनी देवी से हो गई देवी चंद्रहासिनी ने उन्हें आगे बढ़ने से रोक दिया और वे वही टापू पर स्थापित हो गई। स्थानीय मान्यता के अनुसार चंद्रहासिनी देवी के दर्शन के बाद नाथल दाई देवी का दर्शन करना भी अनिवार्य है । ऐसा देखा गया है कि लबालब बारिश के बाद भी नाथल दाई देवी का मंदिर नहीं डूबता। यहाँ एक कहानी प्रचलित है कि महानदी में डूबते एक बालक को माता नाथलदाई द्वारा बचाया गया था।
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