धर्मदर्शन, पूनम ऋतु सेन। शारदीय नवरात्र का पर्व प्रारंभ हो चुका है ऐसे में सभी भक्तगण माता को प्रसन्न करने के लिए तरह तरह के उपायों में जुटे हुए हैं। दुर्गा मां को प्रसन्न करने के लिए ये 9 दिन महत्वपूर्ण होते हैं चाहे चैत्र नवरात्र हो या शारदीय नवरात्र या गुप्त नवरात्र। ऐसा माना जाता है की माँ स्वयं अपने भक्तों के कष्टों को हरने के लिए धरती में आती है और इन दिनों उनकी आराधना करने वाले उपासको के वह संकट और दुःखों को दूर कर देतीं हैं।
नवरात्रि में हर दिन अलग-अलग स्वरूपों के दुर्गा मां की पूजा की जाती है और हर स्वरूप की माता से अलग अलग वरदान हम प्राप्त करतें हैं।
दुर्गा का पहला स्वरूप – माँ शैलपुत्री
देवी दुर्गा का पहला स्वरूप मां शैलपुत्री हैं पर्वतराज हिमालय के घर में पुत्री के रूप में पैदा होने पर माता का नाम शैलपुत्री पड़ा। इस दिन उपासना करने वाले साधक अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थापित करते हैं और यहीं से उनकी साधना का प्रारंभ होता है।
ध्यान मंत्र
वन्दे वांच्छित लाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ॥
माँ शैलपुत्री के स्वरूप का वर्णन
शैलपुत्री माता वृषभ पर सवार हैं इसलिए इन्हें वृषभरूढ भी कहा जाता है। इस स्वरुप के माता के दाहिने हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल का फूल सुशोभित है। यही माता अपने पूर्व जन्म में प्रजापति दक्ष की पुत्री के रूप में उत्पन्न हुई थी और तब इनका नाम सती था उस रूप में इनका विवाह भगवान शंकर से हुआ था।
पूजा विधि
पारम्परिक रूप से नवरात्र में घट स्थापना कर नौ दिनों तक पूजा की जाती है लेकिन आप कलश स्थापना नहीं कर रहें हैं तो इसके लिए कुछ अलग पूजा विधि भी बताया जाता है। किसी पाटे या लकड़ी के स्थल में माता की मूर्ति या प्रतिमा रख कर पूजा की विधियां सम्पन्न कर सकते हैं । इसके लिए घट स्थापना की पूजा के साथ मां शैलपुत्री के स्वरूप का स्मरण करते हुए उनके ध्यान मंत्र का उच्चारण करना है और माँ के श्री चरणों मे लाल पुष्प अर्पित करना है।
उपरोक्त मंत्र के अलावा इस मंत्र का जाप भी किया जा सकता है-
” ॐ शम् शैलपुत्री देव्यै नमः”
वरदान प्राप्ति
मां शैलपुत्री को गाय का घी अर्पित करने पर माता से आरोग्य जीवन का आशीर्वाद प्राप्त होता है, साथ ही निरोगी काया और स्वस्थ शरीर निर्माण में भक्तों को माँ से वरदान मिलता है।
शैलपुत्री माता की कथा
एक बार प्रजापति दक्ष ने बहुत बड़ा यज्ञ किया इसके लिए प्रजापति दक्ष ने बहुत बड़े-बड़े राजाओं को अपना अपना योगदान देने के लिए निमंत्रण प्रदान किया किंतु शंकर जी को उन्होंने निमंत्रण नहीं भेजा।जब सती माता ने सुना कि उनके पिता बहुत बड़े विशाल यज्ञ अनुष्ठान करा रहे हैं तो वहां जाने के लिए उनका मन बेचैन हो उठा। उन्होंने अपनी यह इच्छा भगवान शंकर को बताई किंतु शंकर द्वारा वहां जाने से मना करने पर माता सती ने पुनर्विचार किया और यह सोचा कि उनके पिता किसी कारणवश उन्हें निमंत्रण देने के लिए भूल गए हैं। भगवान शंकर के द्वारा चेताये जाने के बावजूद माता सती अपनी मां अपनी बहनों से मिलने के लिए लालायीत हो उठीं और शंकर जी से वहां जाने के लिए अनुरोध करने लगी। उनकी यह प्रबोध आग्रह को शंकर जी ठुकरा न सके और माता सती को वहां जाने के लिए अपनी सहमति दे दीं।
जब माता सती अपने मायके पहुंची तब उन्होंने यह देखा कि वहां कोई भी उनका आदर सत्कार नहीं कर रहा था ना ही कोई मान सम्मान दे रहा था। केवल उनकी माता ने उन्हें इसने पूर्वक गले लगाया साथ ही उन्हें उनकी बहनों के बातों में व्यंग व उपहास की झलकियां दिखाई दे रही थी। परिजनों के इस व्यवहार से माता सती को बहुत गहरा ठेस पहुंचा । इसके बाद माता सती ने यह भी देखा कि प्रजापति दक्ष के मन में उनके प्रति शंकर के लिए अपमानजनक भाव भरे हुए हैं उनके मुंह से शंकर जी के लिए जब अपमानजनक शब्दों को वह सुनी तो वह क्रोधित हो उठीं और तब उन्हें भगवान शंकर की बात ना मानने पर पछतावा हुआ और अपने पति के लिए अपमान को वह सह ना सकी और क्रोधित होकर अपने उस रूप को योगाग्नि में भस्म कर दिया।
जब शंकर जी ने इस प्रसंग के बारे में सुना तब वह अपने गणों को भेजकर प्रजापति दक्ष के उस यज्ञ को पूर्णता ध्वस्त करवा दिया और इसी के पश्चात माता सती के उस रूप को त्याग कर अगले जन्म में वह पर्वतराज हिमालय के घर शैलपुत्री के रूप में जन्मी। हेमवती नाम भी पार्वती माता के इसी स्वरूप को कहते हैं। और पूर्व जन्म की भांति इस जन्म में भी भगवान शंकर से उनका विवाह हुआ।
जब माता सती अपने मायके पहुंची तब उन्होंने यह देखा कि वहां कोई भी उनका आदर सत्कार नहीं कर रहा था ना ही कोई मान सम्मान दे रहा था। केवल उनकी माता ने उन्हें इसने पूर्वक गले लगाया साथ ही उन्हें उनकी बहनों के बातों में व्यंग व उपहास की झलकियां दिखाई दे रही थी। परिजनों के इस व्यवहार से माता सती को बहुत गहरा ठेस पहुंचा । इसके बाद माता सती ने यह भी देखा कि प्रजापति दक्ष के मन में उनके प्रति शंकर के लिए अपमानजनक भाव भरे हुए हैं उनके मुंह से शंकर जी के लिए जब अपमानजनक शब्दों को वह सुनी तो वह क्रोधित हो उठीं और तब उन्हें भगवान शंकर की बात ना मानने पर पछतावा हुआ और अपने पति के लिए अपमान को वह सह ना सकी और क्रोधित होकर अपने उस रूप को योगाग्नि में भस्म कर दिया।
जब शंकर जी ने इस प्रसंग के बारे में सुना तब वह अपने गणों को भेजकर प्रजापति दक्ष के उस यज्ञ को पूर्णता ध्वस्त करवा दिया और इसी के पश्चात माता सती के उस रूप को त्याग कर अगले जन्म में वह पर्वतराज हिमालय के घर शैलपुत्री के रूप में जन्मी। हेमवती नाम भी पार्वती माता के इसी स्वरूप को कहते हैं। और पूर्व जन्म की भांति इस जन्म में भी भगवान शंकर से उनका विवाह हुआ।
दुर्गा के नौ स्वरूपों में प्रथम शैलपुत्री मां की शक्तियां अनंत हैं।