महिलाओं को आज हर जगह समानता का अधिकार मिला हुआ है लेकिन फिर भी कहीं ना कहीं पिछड़ी हुई नजर आती है। एक कारण यह भी है कि उन्हें आज भी अपने अधिकारों की जानकारी नहीं है, शायद इस वजह से अपने कार्यस्थल में, अपने परिवार में और अन्य जगहों में अपने हक के लिए नहीं खड़े हो पाती। महिला दिवस पर हम आपके लिए लेकर आए हैं महिलाओं से जुड़े कई ऐसे अधिकारों की जानकारी जिससे महिलाएं अपने हक के लिए लड़ सकती हैं।
आखिर घरेलू हिंसा क्यों
भारत में महिलाओं द्वारा उत्पीड़न में सबसे अधिक मामले घरेलू हिंसा के रहते हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा महिलाओं के खिलाफ दर्ज किए गए 4.05 लाख मामलों में से 1.26 लाख घरेलू हिंसा के मामले थे। जीवन के सभी क्षेत्रों की महिलाओं को घरेलू हिंसा का शिकार होना पड़ता है। उन्हें पता होना चाहिए कि वे घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005. Protection of Women from Domestic Violence Act 2005 के तहत संरक्षित हैं। माता-पिता, भाइयों, पति या लिव-इन पार्टनर द्वारा पीड़ित की गयीं महिलाओं को इस अधिनियम के तहत संरक्षित किया जाता है। इसके साथ ही दहेज प्रताड़ना की धाराओं का उपयोग कर भी आप अपने अधिकारों की रक्षा कर सकती हैं।
गिरफ्तारी से जुड़े अधिकार
भारतीय नागरिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा-46 के अनुसार, किसी भी महिला को सुबह 6 बजे से पहले और शाम 6 बजे के बाद गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है, भले ही पुलिस के पास गिरफ्तारी वारंट हो। इतना ही नहीं, एक महिला को पूछताछ के लिए थाने जाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। क्रिमिनल प्रोसीजर कोड की धारा 160 के तहत महिलाएं यह मांग कर सकती हैं कि किसी कांस्टेबल, परिवार के सदस्यों या दोस्तों की मौजूदगी में उनके पर पूछताछ की जाए।
समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976
यह कानून सैलरी या रेम्यूनरेशन के मामले में होने वाले भेदभाव को रोकता है। यह पुरुष और महिला श्रमिकों को समान मुआवजे मिलने पर आवाज़ बुलंद करता है। महिलाओं के हितों की रक्षा के लिए इन कानूनों को जानना आवश्यक है। अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होने पर ही आप अपने साथ घर, कार्यस्थल या समाज में होने वाले किसी भी अन्याय के खिलाफ लड़ सकते हैं।
कार्यस्थल उत्पीड़न के खिलाफ अधिकार
की उम्र से पहले कर दी जाती है। वर्तमान में, भारत बाल विवाह के मामले में दुनिया में 13 वें स्थान पर है। चूंकि बाल विवाह सदियों से भारतीय संस्कृति और परंपरा में डूबा हुआ है, इसलिए इसे समाप्त करना कठिन रहा है। बाल विवाह निषेध अधिनियम को 2007 में प्रभावी बनाया गया था। इस कानून के अनुसार दुल्हन की उम्र 18 वर्ष से कम हो या लड़के की उम्र 21 वर्ष से कम हो। कम उम्र की लड़कियों से शादी करने की कोशिश करने वाले माता-पिता इस कानून के तहत कार्रवाई के अधीन हैं।
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेन्सी एक्ट, 1971मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेन्सी एक्ट, 1971
भारत में महिलाओं को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेन्सी एक्ट, 1971 कुछ शर्तों पर मेडिकल डॉक्टरों (विशिष्ट स्पेशलाइजेशन वाले) द्वारा अबॉर्शन कराने की अनुमति देता है। अबॉर्शन अधिकारों को तीन कैटेगरी में बांटा गया है। जहां प्रेग्नेंसी के 0 हफ्ते से 20 हफ्ते के बीच अबॉर्शन कराने के लिए कुछ कंडीशन दी गई हैं। अगर कोई महिला मां बनने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं है, या फिर कॉन्ट्रासेप्टिव मेथड या डिवाइस फेल हो जाने के कारण न चहते हुए भी महिला प्रेग्नेंट हो गई है, तो वह अपना अबॉर्शन करा सकती है।
इसके साथ ही अगर सोनोग्राफी की रिपोर्ट में यह बात सामने आए कि भ्रूण में किसी तरह की शारीरिक या मानसिक विकलांगता हो सकती है, तो भी महिला को एबॉर्शन कराने का हक़ है।
अब तक हमारे देश में विवाहित महिलाओं को ही एबॉर्शन का हक़ था, पर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा कुछ मामलों में अविवाहित लड़कियों को भी यह अधिकार मिल गया है।