पूर्व गुरिल्ला नेता पुष्प कमल दहल “प्रचंड” ने सोमवार को तीसरी बार नेपाल के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। एक दिन पहले ही “प्रचंड” ने नेपाली कांग्रेस के नेतृत्व वाले चुनाव पूर्व गठबंधन से नाता तोड़ विपक्षी नेता केपी शर्मा ओली से हाथ मिला लिया था। सीपीएन-एमसी के चेयरमैन 68 वर्षीय “प्रचंड” ने रविवार को राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी को 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा के 169 सदस्यों का समर्थन प्राप्त करने संबंधी पत्र सौंपा था। इसके बाद भंडारी ने उन्हें प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया था। “प्रचंड” ने शीतल निवास में आयोजित आधिकारिक समारोह में पद व गोपनीयता की शपथ ली।
राष्ट्रपति भंडारी ने तीन उप प्रधानमंत्रियों व अन्य कैबिनेट मंत्रियों को भी श्ापथ दिलाई। इनमें ओली के सीपीएन-यूएमएल के बिष्णु पौडेल, सीपीएन-एमसी के नारायण काजी श्रेष्ठ व राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी (आरएसपी) के रबी लामिछाने शामिल हैं। पौडेल को वित्त, श्रेष्ठ को बुनियादी ढांचा व लामिछाने को गृह मंत्रालय सौंपे गए। सीपीएन-यूएमएल की ज्वाला कुमारी साह, दामोदर भंडारी व राजेंद्र कुमार राय तथा जनमत पार्टी के अब्दुल खान को मंत्रिमंडल में जगह मिली है।
प्रचंड बहुमत से प्रधानमंत्री चुने जाने के बावजूद “प्रचंड” को निचले सदन में 30 दिनों के भीतर विश्वास मत हासिल करना होगा। अगर वह विश्वास मत हासिल करने में विफल रहते हैं, तो नए सिरे से सरकार गठन की प्रक्रिया शुरू होगी। पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने सोमवार को “प्रचंड” को फोन पर बधाई दी। वह शपथग्रहण समारोह में मौजूद भी रहे। प्रतिनिधिसभा में 89 सीटों के साथ नेपाली कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी है। सीपीएन-यूएमएल और सीपीएन-एमसी के पास क्रमश: 78 व 32 सीटें हैं।
13 वर्षों तक रहना पड़ा था भूमिगत
11 दिसंबर, 1954 को पोखरा के निकट कास्की जिले के धिकुरपोखरी में जन्मे “प्रचंड” करीब 13 साल तक भूमिगत रहे। उन्होंने वर्ष 1996 से 2006 तक सशस्त्र संघर्ष का नेतृत्व किया। नवंबर 2006 में व्यापक शांति समझौते पर हस्ताक्षर के बाद सीपीएन-एमसी ने राजनीति का रास्ता अपना लिया।
नई सराकर ने भारत व चीन के साथ बराबर निकटता की जताई इच्छा
रायटर के अनुसार, नेपाल की नई सरकार ने पड़ोसियों भारत व चीन के साथ बराबर निकटता रखने की इच्छा जताई है। उप प्रधानमंत्री बनने से पहले नारायण काजी श्रेष्ठ ने कहा, “हम दोनों पड़ोसियों से समान निकटता रखेंगे। सरकार का ध्यान फिलहाल महंगाई कम करने, विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाने, पूंजगत व्यय जुटाने, व्यापार घाटा कम करने तथा ब्याजदर कम करने पर केंद्रित होना चाहिए।”
भारत-नेपाल संबंधों के हित में नहीं “प्रचंड” :
चकित कर देने वाले घटनाक्रम में “प्रचंड” का प्रधानमंत्री बनना भारत-नेपाल संबंधों के हित में नहीं है। उनके प्रमुख समर्थक ओली के पीएम रहते सीमा विवाद को लेकर दोनों देशों के रिश्ते तनावपूर्ण हो गए थे। “प्रचंड” को चीन समर्थक के रूप में देखा जाता है। वह पूर्व में कह चुके हैं कि नेपाल-भारत संबंधों को बदले परिदृश्य के आधार पर विकसित करने की जरूरत है। वह 1950 के शांति व मैत्री समझौते में बदलाव तथा कालापानी व सुस्ता सीमा विवाद को खत्म करने पर बल देते हैं। हालांकि, हाल के दिनों में उन्होंने “ऐतिहासिक गलतियों” को कूटनीति के जरिये सुधारने की बात भी कही है। ओली को भी चीन का चहेता माना जाता है। भारत, नेपाल के साथ 1,850 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है।