कीव। यूक्रेन में बसे भारतीय वहां से निकलने की जद्दोजहद में लगे हैं। वे किसी तरह पौलेंर् बार्डर तो पहुंच गए हैं पर यहां से आगे जाने के लिए उन्हें ट्रांजिट वीजा की जरूरज है जो आसानी से मिलता नहीं दिख रहा है। हम लोगों को आनन-फानन में बताया गया कि अब या तो आप यहीं रुककर अपना बचाव करें या फिर अपने मुल्क वापस चले जाएं। कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करना है। बसी बसाई गृहस्थी है। इतनी आसानी से सब कुछ नहीं छूटता लेकिन जान बचानी थी तो क्या करते। सब छोड़ आए कीव में। बस अपनी गाड़ी उठाई। कुछ जरूरी दस्तावेज लिए और मुख्य हाई-वे छोड़कर दूसरे रास्तों से पोलैंड बॉर्डर की ओर बढ़ चले। 12 घंटे के कठिन सफर के बाद इस वक्त में पोलैंड बॉर्डर पर हूं और यहां पर 15 किलोमीटर लंबी लाइन लगी है। समझ नहीं आ रहा है कि पोलैंड बॉर्डर से प्रवेश मिलेगी भी या नहीं। हालात बहुत खराब हैं। फिलहाल अभी यह इलाका सुरक्षित है। लेकिन जिस तरीके से रूसी सेना आगे बढ़ रही है, उससे कुछ कहा नहीं जा सकता है। दिल्ली के द्वारका निवासी राकेश समेत कई लोगों ने यूक्रन के ताजा हालात की पूरी जानकारी दी। राकेश कहते हैं उनका यूक्रेन की राजधानी कीव में उनका रेस्टोरेंट है। वे कहते हैं कि रूस और यूक्रेन का विवाद तो बहुत लंबे समय से चल रहा था, लेकिन हालात एकदम बदल जाएंगे इसका बिल्कुल अंदाजा नहीं था। वह कहते हैं पिछले हफ्ते उन्होंने भारत वापसी के लिए टिकट कराए कि अब वापस निकल चलना चाहिए। लेकिन बीती सुबह से रूस ने हमले करने शुरू कर दिए। ऐसे में उनके पास अब अपने वतन वापसी के सिवा कोई रास्ता नहीं था और वतन वापसी के लिए कोई साधन भी नहीं उपलब्ध थे। ऐसे में अब वह सिर्फ पोलैंड बॉर्डर पर खड़े होकर इंतजार कर रहे हैं कि उन्हें पोलैंड का ट्रांजिट वीजा मिल जाए ताकि वह पोलैंड सुरक्षित पहुंच सके। राकेश के साथ ही हैदराबाद के रहने वाले पिताली श्रीकांत कहते हैं कि वे जब कीव से निकल रहे थे तो उनके सामने ही एयरपोर्ट पर लगातार धमाके किए जा रहे थे। वह कहते हैं उन्हें नहीं पता वह शहर जिसने उनको सब कुछ दिया अब वहां के अब क्या हालात हैं। क्योंकि वे उस शहर से तकरीबन 15 घंटे की दूरी पर पोलैंड बॉर्डर पहुंच चुके हैं। पिताली श्रीकांत कहते हैं कि पिछले सात सालों से यूक्रेन में रह रहे थे। उन्हें वहां की नागरिकता मिल चुकी थी। अपनी बसी बसाई पूरी गृहस्थी को ऐसे ही छोड़कर चले आना उनके लिए सपनों के बिखरने जैसा है। वे कहते हैं उनकी आंखों के सामने पूरे शहर को ध्वस्त किया जा रहा था। उन्होंने बताया कि जब उनको यह पता चला कि अब यहां रुकना मुनासिब नहीं है तो वह लगातार स्थानीय प्रशासन के संपर्क में रहे लेकिन उनको कोई मदद नहीं मिल पाई।