जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी की पत्नी ऋचा जोगी का अनुसूचित जनजाति का जाति प्रमाणपत्र खारिज कर दिया गया है। इससे पहले प्रशासन अमित जोगी का जाति प्रमाणपत्र खारिज कर चुका है। जोगी परिवार इस फैसले को अदालत में चुनौती देने की तैयारी कर रहा है। इससे पहले ही जाति मामले के शुरूआती शिकायतकर्ता संत कुमार नेताम ने उच्च न्यायालय में केविएट दायर कर दिया है। जानकार बता रहे हैं कि अभी के हालात में जोगी परिवार का 2023 में भी किसी आरक्षित सीट से चुनाव लड़ना मुश्किल दिख रहा है। जकांछ के अध्यक्ष अमित जोगी ने कहा, सरकार के निर्देश पर कमेटी जिस तरह मन बनाकर बैठी थी, उसमें इसकी संभावना अधिक दिख रही थी। कमेटी गठन में नियमों का उल्लंघन हुआ था, उसको लेकर हम पहले ही उच्च न्यायालय गए थे। अब फैसला आ गया है तो इसको भी उच्च न्यायालय में चुनौती दी जाएगी। इधर मूल शिकायतकर्ता संत कुमार नेताम अपने वकील संदीप दुबे और सुदीप श्रीवास्तव के माध्यम से हाईकोर्ट में आज केविएट फाइल कर रहे हैं। वकील का कहना है, उन्हें इस बात की आशंका है कि ऋचा निर्णय को हाईकोर्ट में चुनौती दे सकती हैं। अधिवक्ता दुबे ने कहा, अगर ऐसा होता है तो हाईकोर्ट ऋचा को अंतरिम राहत देने से पहले उनका पक्ष भी सुने इसके लिए केविएट फाइल किया जा रहा है। उच्च न्यायालय के अधिवक्ताओं और खुद अमित जोगी को भी अंदेशा है कि अदालत के सामने यह मामला लंबा खींच सकता है। संभवत: 2023 के विधानसभा चुनाव तक इसका फैसला न आ पाए। कहा जा रहा है, बहुत संभव है कि जोगी परिवार अगला चुनाव भी किसी आरक्षित सीट से न लड़ पाए। नवम्बर 2020 में हुए मरवाही विधानसभा उपचुनाव में भी जाति प्रमाणपत्र के निलंबित हो जाने की वजह से ऋचा जोगी का नामांकन खारिज हो गया था।
जोगी के आईएएस से राजनेता बनने के साथ ही उठा जाति विवाद
छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री और दिवंगत नेता अजीत जोगी ने अपनी पढ़ाई और लोक सेवक के कॅरियर में कभी आरक्षित कोटे का लाभ नहीं लिया। इसके उलट अपने राजनीतिक कॅरियर में वे अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों का ही प्रतिनिधित्व करते रहे। लेकिन उनकी जाति पर सवाल राजनीति में आने के साथ उठ गए। 1986 में इंदौर हाइकोर्ट में पहला मामला आया। हालांकि एक साल के भीतर यह शिकायत खारिज हो गई। 2001 में जोगी ने मरवाही का चुनाव जीता तो भाजपा के स्थानीय नेता संत कुमार नेताम ने राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग में जोगी की जाति को चुनौती दी। जोगी उच्च न्यायालय पहुंच गए। वहां से आदेश मिला कि आयोग किसी की जाति तय नहीं कर सकता। 2002 में बिलासपुर उच्च न्यायालय में एक और याचिका दाखिल हुई। कई जज इसकी सुनवाई से इनकार करते रहे। संत कुमार नेताम मामले को लेकर सर्वोच्च न्यायालय पहुंच गए। 2011 में सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च स्तरीय छानबीन समिति से जांच कराने का आदेश दिया।