कही-सुनी (10 OCT-21): मंच के पीछे की कहानियाँ- राजनीति, प्रशासन और राजनीतिक दलों की

हास्य रस में बुनी हुई एक हल्की -फुल्की अन्दाज में- जो राजनीति, अफसर साहब के आसपास की गलियों से होते हुए पाठकों तक पहुचीं।

रवि भोई ( लेखक, पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)



मंत्री के खिलाफ विधायकों का हल्ला बोल के मायने

कहा जा रहा है कांग्रेस के नेता-विधायक आपस में ही गोल मारने में लगे हैं। स्कूल शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम के खिलाफ विधायक बृहस्पति सिंह की अगुवाई में मोर्चा को इसका नमूना माना जा रहा है। उधर एक मंत्री के खिलाफ पुलिस ने गड़े मुर्दे उखाड़ना शुरू कर दिया है। बृहस्पति सिंह के नेतृत्व में विधायकगण मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह पर स्कूल शिक्षा विभाग में नियुक्ति और ट्रांसफर में गड़बड़ी का आरोप लगा रहे हैं , वैसे डॉ. प्रेमसाय सिंह के बचाव में स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह सामने आ गए हैं और प्रेमसाय सिंह ने ट्रांसफर का ठीकरा समन्वय समिति पर फोड़ दिया है, लेकिन बृहस्पति का वार जारी हैं और वे रह-रहकर तीर छोड़ रहे हैं। वैसे लोग इस लड़ाई को गुटीय राजनीति के तौर पर देख रहे हैं। कहते हैं मंत्री पर आरोप लगाने वाले अधिकांश विधायक मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पक्ष में दिल्ली की दौड़ लगाने वाले हैं, जबकि डॉ. प्रेमसाय सिंह दिल्ली नहीं गए थे। वहीँ कहा जा रहा है कि पुलिस के निशाने पर आए मंत्री भी भूपेश बघेल के लिए दिल्ली की यात्रा नहीं की। वे रायपुर में रहे। कांग्रेस के भीतर चल रही खींचतान को देखकर अनुमान लगाया जा रहा है आने वाले दिनों में सत्ता -संगठन में और अंतर्कलह बढ़ सकता है? राजनीतिक उठापटक और बयानबाजी के बीच प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम पद यात्रा में लगे हैं , जिसे लोग तूफान के पहले की तैयारी कह रहे हैं।

कवर्धा की घटना का राजनीतिकरण

लगता है छत्तीसगढ़ की धर्मनगरी कवर्धा में हिंसा के बाद वहां गंगा-जमुनी संस्कृति को तार-तार होने से बचाने की जगह राजनीतिक दल आपस में लड़ने और अपनी-अपनी रोटियां सेंकने में लग गए हैं। इसी कवर्धा शहर में 2014 में धर्म संसद का आयोजन हुआ था और शंकराचार्य और महामंडलेश्वर जुटे थे। कबीर साहिब के आगमन से कृत-कृत और उनके शिष्य के वंशज की गद्दी वाले कबीरधाम में कर्फ्यू को राज्य के लिए अच्छा संकेत नहीं माना जा रहा है। कहा जा रहा है जिला प्रशासन के कदम कहीं न कहीं लड़खड़ा गए। कहते हैं जिला प्रशासन परिस्थितियों के आधार पर निर्णय लेने की जगह राजधानी का मुंह ताकता रह गया। वहीँ शीर्ष नेतृत्व भी पांच दिन बाद हरकत में आया। अब घटना को लेकर भाजपा-कांग्रेस एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप कर रहे हैं। इससे राजनीति गरमा गई है। भाजपा सड़क पर उतरने वाली है तो कांग्रेस और सरकार बचाव में भाजपा नेताओं पर फंदा डाल रही है।

रामगोपाल अग्रवाल दायरे से बाहर

कांग्रेस हाईकमान ने सरकार और संगठन दोनों जगह पद में रहने वाले नेताओं को पिछले दिनों एक व्यक्ति, एक पद के फार्मूले के आधार पर प्रदेश कांग्रेस के पदों से हटा दिया। संगठन से हटाए गए नेताओं में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के करीबी माने जाने वाले गिरीश देवांगन, और अटल श्रीवास्तव भी हैं। हाईकमान ने पाठ्य पुस्तक निगम के अध्यक्ष बनाए जाने की वजह से संचार प्रमुख के पद से शैलेष नीतिन त्रिवेदी को कार्यमुक्त कर दिया। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कोषाध्यक्ष और नागरिक आपूर्ति निगम के अध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल एक व्यक्ति, एक पद के फार्मूले के दायरे से बाहर रहे। कहा जा रहा है रामगोपाल अग्रवाल की जगह अरुण सिंघानिया को कोषाध्यक्ष की जिम्मेदारी दी जा सकती थी। कांग्रेस हाईकमान ने अरुण सिंघानिया को प्रदेश कांग्रेस का उपाध्यक्ष बनाया है।

नाराज नेता का नया दांव

कहते हैं भूपेश सरकार से नाराज चल रहे कांग्रेस के एक बड़े नेता ने नया तीर छोड़ा है। चर्चा है नाराज नेता ने भाजपा राज में सरकार के करीबी रहे चार लोगों के भूपेश सरकार में भी ताकतवर होने के बारे में हाईकमान से शिकायत की है। कहा जा रहा है कि इनमें दो अफसर और दो प्रोफेशनल्स हैं। वैसे लोग यह भी कह रहे हैं कि कभी अजीत जोगी के आसपास मंडराने वाले नेता इस सरकार में मधुमक्खी की तरह दिखने लगे हैं।

विधायक के घर नाराज नेता का डिनर

कहते हैं भूपेश सरकार से नाराज एक नेता और वरिष्ठ विधायक की दोस्ती गहरी हो गई है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पक्ष में कई विधायकों की दिल्ली दौड़ के बीच पिछले दिनों वरिष्ठ विधायक के निवास पर नाराज नेता का डिनर पर जाना भी चर्चा का विषय है। कहा जा रहा है कि नेतृत्व में उलटफेर की स्थिति में वरिष्ठ विधायक का मंत्री बनना तय है। राज्य बनने से पहले तक छत्तीसगढ़ की राजनीति को चलाने वाले वरिष्ठ विधायक को खुश करने के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने दांव तो चला है , पर सत्ता के शीर्ष में रह चुके नेता को झुनझुना पकड़ा देने से शायद ही संतोष मिले ?

चरणदास महंत की जीत

विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत ने जांजगीर-चांपा जिले के कांग्रेस अध्यक्ष चोलेश्वर चंद्राकर को आख़िरकार हटवाकर ही दम लिया। कहते हैं चोलेश्वर दूसरे गुट से थे और महंत को नजरअंदाज करते थे। चोलेश्वर को हटावाने के लिए महंत महीने से लगे थे। वैसे हाईकमान ने संतुलन के लिए चोलेश्वर को प्रदेश कांग्रेस में ओबीसी विभाग का अध्यक्ष बना दिया है। चर्चा है कि चोलेश्वर को हटवाने के लिए महंत ने टीएस सिंहदेव से हाथ मिला लिया। कांग्रेस हाईकमान ने अब जांजगीर-चांपा जिले का कांग्रेस अध्यक्ष राघवेंद्र सिंह को बनाया है। राघवेंद्र सिंह अकलतरा के पूर्व विधायक राकेश सिंह के पुत्र हैं। कहा जा रहा है राघवेंद्र सिंह के जिला अध्यक्ष बनने से महंत खेमे के लोगों को भाव मिलेगा और सिंहदेव समर्थकों की पूछपरख होगी। कहते है यह राघवेंद्र के कार्यभार ग्रहण करते वक्त दिखाई पड़ा, लेकिन कार्यक्रम से पूर्व अध्यक्ष, लोकसभा प्रत्याशी और पूर्व विधायक की दूरी पर चर्चा हो रही है।

जनसंपर्क विभाग में बवाल

इन दिनों राज्य का जनसंपर्क विभाग चर्चा में है। कहते हैं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के ड्रीम प्रोजेक्ट गोबर से बिजली बनाने की योजना के शुभारंभ का राष्ट्रीय मीडिया में कवरेज न मिलने पर बवाल रहा, फिर जनसंपर्क संचालक के पद पर राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी की पदस्थापना से माहौल गरमा गया। सरकार की छवि चमकाने वाले जनसंपर्क विभाग के अफसरों ने सरकार के फैसले के खिलाफ मोर्चा खोल लिया। लिखने-पढ़ने वालों ने 12 अक्टूबर से बेमुद्दत कलम बंद की धमकी दी है। नए जनसंपर्क संचालक को जनसंपर्क विभाग के कई अफसरों से जूनियर बताते हुए मुख्य सचिव से फैसला बदलने का आग्रह किया गया, लेकिन भूपेश सरकार जनसंपर्क विभाग में जिस तरह परंपरा से हटकर काम कर रही है, उससे तो लगता नहीं कि सरकार कदम पीछे खींचेगी । भूपेश राज में ही राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों की संवाद में पोस्टिंग शुरू हुई और अब पहली बार सीनियर आईपीएस अफसर को संवाद का मुखिया बनाने के साथ जनसंपर्क विभाग की कमान सौंपी गई है।

बिलासपुर बार की घटना से उपजे कई सवाल

बिलासपुर के एक बार में नए-नवेले पुलिस अफसरों की हरकत से कई सवाल खड़े हो गए हैं। कुछ लोग इसे पुलिस महकमे में घटते अनुशासन और मार्गदर्शन की कमी मान रहे हैं, तो कुछ बढ़ती उच्चश्रृंखलता कह रहे हैं। पुलिस सेवा कोई साधारण सेवा नहीं है, बल्कि उस पर समाज का भरोसा टिका है। पुलिस से समाज न्याय और सुरक्षा की उम्मीद करती है। पुलिस अफसर हो या फिर कोई दूसरा अधिकारी , सभी को अपना जीवन जीने का अधिकार है, लेकिन सबके लिए मर्यादा और सीमा तय है। “कहा जाता है – अपनी इज्जत अपने हाथ।” फिर पार्टी और मनोरंजन के लिए पुलिस का अपना मेस होता है। बिलासपुर में भी पुलिस मेस है। नए-नवेले पुलिस अफसरों को सजा देने से ज्यादा जरुरी है, उन्हें हर दृष्टि से प्रशिक्षित करें और कुशल बनाएं, जिससे वे अनुशासन में रहते समाज को नई दिशा दें। यह जिम्मेदारी वरिष्ठों की है।



(डिस्क्लेमर – हमने लेखक के मूल लेख में कोई भी बदलाव नही किया है। प्रकाशित पोस्ट लेखक के मूल स्वरूप में है।)

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