आलेख : स्वराज करुण
हास्य -व्यंग्य कैसा होना चाहिए , यह देखना हो तो काका हाथरसी की रचनाओं को पढ़िए , जो हमें हँसाती भी हैं और हँसी-हँसी में ही देश और दुनिया की तमाम तरह की सामाजिक ,आर्थिक और राजनीतिक विसंगतियों पर तीखे प्रहार भी करती हैं। वो हास्य रस के लोकप्रिय मंचीय कवि थे ,लेकिन हास्य के नाम पर चुटकुलेबाजी नहीं करते थे। उनकी हास्य कविताओं में व्यंग्य के गहरे रंग हुआ करते थे।
हमारे आज के महाप्रभुओं में व्यंग्य सहन करने की ताकत और हिम्मत दोनों ख़त्म होती जा रही है। अगर काकाजी आज हमारे बीच होते तो शायद देश के उन तथाकथित भाग्य विधाताओं के निशाने पर होते ,जिन पर वो खट्टे -मीठे हास्य रस में भिगोकर तैयार किए गए अपने व्यंग्य बाणों का निशाना लगाते रहते थे। कैसा अदभुत संयोग है कि आज उन्हीं काका जी की जयंती और पुण्यतिथि दोनों एक साथ है । वह हिन्दी साहित्य की दुनिया में हास्य-व्यंग्य के बेजोड़ कवि और बेताज बादशाह थे।
अपने दोहों और कुंडलियों के जरिए छोटी -से-छोटी और बड़ी -से बड़ी , हर प्रकार की मानव जीवन में
व्याप्त बुराइयों पर तंज कसते हुए व्यंग्य के तीखे तीर चलाने वाले काका जी का पारिवारिक नाम प्रभुलाल गर्ग था । उनका जन्म 18 सितम्बर 1906 को उत्तरप्रदेश के हाथरस में हुआ था । निधन 18 सितम्बर 1995 को हुआ । जन्म और कर्म भूमि हाथरस को उन्होंने अपना साहित्यिक उपनाम ‘हाथरसी’ बनाकर देश -विदेश में मशहूर कर दिया। कवि सम्मेलनों के मंचों पर साफ -सुथरे हास्य के साथ व्यंग्य की मीठी छुरी चलाने में उन्हें महारत हासिल थी । हिन्दी कविता में हास्य – व्यंग्य की विधा को उन्होंने लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचाया । भारत सरकार ने उन्हें वर्ष 1965 में पद्मश्री अलंकरण से नवाजा ।शायद उन दिनों हमारे शीर्षस्थ नेतागण व्यंग्य रचनाओं का बुरा नहीं मानते थे।
काका जी की पुस्तकों में ‘ काका की चौपाल ‘ और ‘ जय बोलो बेईमान की ‘ उल्लेखनीय हैं । अपनी प्रसिद्ध रचना ‘ जय बोलो बेईमान की ‘में वह कहते हैं –
मन मैला ,तन उजरा ,भाषण लच्छेदार
ऊपर सत्याचार है ,भीतर भ्रष्टाचार ।
झूठों के घर पण्डित बांचे कथा सत्य भगवान की ।
जय बोलो बेईमान की ,जय बोलो ..!
चैक कैश करवा कर लाया ठेकेदार ,
आज बनाया पुल नया ,कल पड़ गयी दरार ।
बाँकी -झाँकी कर लो काकी फाइव ईयर प्लान की ।
जय बोलो बेईमान की ,जय बोलो ।
न्याय और अन्याय का नोट करो डिफरेंस,
जिसकी लाठी बलवती हाँक ले गया भैंस ।
निर्बल धक्के खाएं तूती बोल रही बलवान की ।
जय बोलो बेईमान की ,जय बोलो ।
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काका जी ने आज की छद्म पत्रकारिता पर भी अपने व्यंग्य का निशाना साधा ।
बानगी देखिए –
पत्रकार दादा बने, देखो उनके ठाठ।
कागज़ का कोटा झपट, करें एक के आठ।।
करें एक के आठ, चल रही आपाधापी ।
दस हज़ार बताएं, छपें ढाई सौ कापी ।।
विज्ञापन दे दो तो, जय-जयकार कराएं।
मना करो तो उल्टी-सीधी न्यूज़ छपाएं ।।
काकाजी की जयंती और पुण्य तिथि पर उन्हें विनम्र नमन ।
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