दंतेवाड़ा। धुर नक्सल प्रभावित दक्षिण बस्तर के दंतेवाड़ा में अब महिलाओं की तरक्की की नई इबारत लिखी जा रही है। यहां पूर्व में खुली डैनेक्स गारमेंट फैक्ट्री में शहर से लेकर गांव तक की महिलाएं काम कर रही हैं और कपड़े देश के बाजारों में भेजी जा रहे हैं। अब कपड़ों की प्रिंटिंग भी दंतेवाड़ा में शुरू की जा रही है। यहां की पुलिस लाइन कारली के शहीद महेंद्र कर्मा कॉलोनी (लोन वर्राटू हब) में डैनेक्स की प्रिंटिंग टैक्सटाइल फैक्ट्री खुली है। इस टैक्सटाइल फैक्ट्री में महिलाएं धुर नक्सल प्रभावित इलाकों की ग्रामीण हैं। खास बात ये है कि इनमें से कोई महिला नक्सली आतंक से पीडि़त है, किसी के अपनों को नक्सलियों ने मार दिया। कुछ ऐसी भी हैं, जो सरेंडर नक्सली के परिवार की सदस्य हैं। इस फैक्ट्री में उत्पादन जुलाई से शुरू होने वाला है। दंतेवाड़ा की महिलाओं के सिले कपड़ों के बाद अब प्रिंट किए गए कपड़े भी देशभर के बाजार में विभिन्न माध्यमों से भेजे जाएंगे। इस फैक्ट्री में अभी और भी मशीनें लगनी बाकी हैं। यहां जुलाई महीने से प्रोडक्शन शुरू हो जाएगा। अभी दंतेवाड़ा में खुली 3 डैनेक्स गारमेंट फैक्ट्री में 700 से ज्यादा महिलाएं काम कर रही हैं। अब तक करीब 40 करोड़ के कपड़ों के लॉट को सिल अन्य प्रदेशों में भेज चुकी हैं।
दूसरे राज्यों से आएंगे ट्रेनर
नक्सल पीडि़त परिवारों की महिलाओं ने भी बताया कि फैक्ट्री खुली है। यहां अभी हम ट्रेनिंग ले रहे हैं। बताया गया है कि ट्रेनिंग के बाद पैसे मिलने शुरू होंगे। यहां काम कर हमें अच्छा लग रहा। यहां की ट्रेनर परमेश्वरी ने बताया कि डैनेक्स गारमेंट फैक्ट्री में काम किया है। यहां प्रिंटिंग का काम सिखाया गया था। फिर मुझे ही ट्रेनिंग की जिम्मेदारी दी गई। कुछ बारीकियां अभी बाकी हैं। दूसरे राज्यों ने ट्रेनर आकर फाइनल ट्रेनिंग देंगे। बताया जा रहा है इस फैक्ट्री में करीब 100 महिलाओं को रोजगार देने का लक्ष्य है।
आत्मनिर्भर होंगी महिलाएं: कलेक्टर
कलेक्टर दीपक सोनी ने बताया कि कारली में प्रदेश की पहली प्रिटिंग टैक्सटाइल फैक्ट्री खुली है। यहां नक्सल पीडि़त परिवार, सरेंडर महिला नक्सली व उनके परिवार को अभी ट्रेनिंग दे रहे हैं, ताकि महिलाएं आत्मनिर्भर बनें और रोजगार से परिवार भी खुशहाल रहे।
प्रभावित महिलाओं को बेहतरी की उम्मीद
कमलबती आयते का पति नक्सल संगठन में था। सरेंडर के बाद डीआरजी टीम में काम कर रहा है। मैं यहां आई हूं, अब दोनों मिलकर कमाएंगे और परिवार खुशहाल होगा। ओरछा की कमलो कवासी की बहन पायके नक्सल संगठन में थी। सरेंडर के बाद सभी दंतेवाड़ा आ गए। अब कमलो को फैक्ट्री में काम मिला। रोजी-रोटी की चिंता खत्म हुई।