चीन अपनी चालबाजी से बाज नहीं आ रहा है। जब सीमा पर भारतीय सैनिकों के आगे उसकी दाल नहीं गली तो अब नेपाल का सहारा ले रहा है। नेपाल को आर्थिक मदद का भरोसा देकर उसे भारत के खिलाफ कार्रवाई के लिए उकसा रहा है। यही वजह है कि चीन के इशारों पर नेपाल लगातार भारत को आंखें दिखाने लगा है। इस बार तो उसने हद पार कर दी। नेपाल अब उत्तराखंड के देहरादून, नैनीताल समेत हिमाचल, उत्तर प्रदेश, बिहार और सिक्किम के कई शहरों को अपना हिस्सा बता रहा है।
नेपाल ने अब एक और विवादित अभियान चला रखा है। नेपाल की सरकार यानी सत्ताधारी पार्टी नेपाली कम्यूनिस्ट पार्टी ने यूनिफाइड नेपाल नेशनल फ्रेंट के साथ मिलकर एक ग्रेटर नेपाल अभियान चलाया है। इसके तहत ही ये लोग भारत के कई प्रमुख शहरों पर अपना दावा कर रहे हैं। इस अभियान के तहत भारत के कई प्रमुख शहरों पर नेपाल अपना दावा कर रहा है। इसके लिए नेपाल 1816 में हुई सुगौली संधि से पहले के तस्वीरों को सबूत के तौर पर पेश करने की कोशिश कर रहा है। नेपाल इसके जरिए अपने देश की जनता को भ्रमित कर रहा है। नेपाल के विदेशों में रहने वाले युवा बड़ी संख्या इस अभियान से भी जुड़ रहे हैं।
अप्रैल 2019 में नेपाल ने संयुक्त राष्ट्र संघ में इस मुद्दे को उठाया भी था। फिर ये मुद्दा शांत हो गया था। अब चीन से भारत के बिगड़े रिश्तों और कालापानी मुद्दे को तूल देने के लिए नेपाल ने नए सिरे से इसे हवा देना शुरू कर दिया है। विशेषज्ञ के हवाले से मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि नेपाल सत्ताधारी दल भारत और नेपाल के संबंधों में दूरी बढ़ाने के लिए दुष्प्रचार कर रही है। ग्रेटर नेपाल के दावे का कोई आधार नहीं है।