राजिम। 16 फरवरी से प्रारंभ हुए माघी पुन्नी मेला का समापन 1 मार्च महाशिवरात्रि को होगा। प्रतिवर्ष इस दिन श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है। छत्तीसगढ़ से ही नहीं बल्कि पूरे देश से लोग पहुंचते हैं। त्रिवेणी संगम में तीन नदियां सोंढूर, पैरी एवं महानदी का मिलन होता है। यहां श्रद्धालुओं के स्नान के लिए दो स्नान कुंड बने हैं। दोनों में श्रद्धालुगण स्नान करते है तथा साधु-संतों का स्नान देखने लायक होता है। पुन्नी मेला के यह अंतिम स्नान साधु-संतों के डुबकी लगाते हुए अलौकिक दृष्य उभरकर सामने आते है। प्रमुख रूप से संगम घाट, अटल घाट, सोनतीर्थ घाट, नेहरू घाट, बेलाही घाट है। इन पांचों घाट के अलावा धार पर सुबह से स्नान का क्रम चलता है, श्रद्धालु डुबकी लगाते है तथा रेत से शिवलिंग बनाकर पूजा अर्चना करने की परंपरा यहां विद्यमान है। इस दिन श्रद्धालुगण सूखा लहरा भी लेते है। जनआस्था है कि मां पार्वती एवं शिवशंकर अन्य वेश धारण कर मेले का भ्रमण करते है। राजिम मेला अपनी विशालता के लिए जाना जाता है। तकरीबन 10 किमी के क्षेत्रफल में फैले इनकी सीमा तीन जिला धमतरी, रायपुर एवं गरियाबंद को छुती है। इसलिए तीनों जिला के नोडल अधिकारी व्यवस्था पर नजर गाड़ाए हुए है कि श्रद्धालुओं को कहीं पर कोई दिक्कत न हो। यहां तीन सेतु भी है जिनमें राजिम पुल, बेलाही पुल एवं चौबेबांधा पुल। यहां पर लाईटिंग से परिक्रमा पथ की साफ नजर आती है। महानदी महाआरती आकर्षण का केन्द्र है। स्थानीय पंडित परिषद के द्वारा प्रतिदिन आरती में प्रतिष्ठित एवं आमजन सम्मिलित होते है। पीएचई विभाग के द्वारा पिआउ पानी के लिए नल की व्यवस्था की गई है। लंबे चौड़े सड़कों पर लोग आसानी से आ-जा रहे है। सीसीटीवी कैमरा से पूरे मेला क्षेत्र को एक स्क्रीन पर कैद कर लिया है जिसमें हर हरकत की खबर मिनटों में चल जाती है। पार्किंग के अलावा पुलिस बल हर चौक-चौराहे पर तैनात है जिससे श्रद्धालुओं को मेला क्षेत्र पहुंचने में सहायता मिल रही है। मेला की ही अंदर मीना बाजार, सरस मेला, सांस्कृतिक कार्यक्रमों की बहार है। जिला प्रशासन पूरी तरह से अलर्ट है ताकि श्रद्धालुओं को कहीं पर दिक्कत न हो।
धार्मिक नगरी राजिम में लगा भक्तों का रेला
माघी पुन्नी मेला में प्रतिदिन श्रद्धालुगण स्नान के साथ मंदिर दर्शन में अपना पूरा समय दे रहे हैं। यहां आने के बाद सबसे पहले संगम में डुबकी लगाते है। नदी में स्नान का अपना अलग महत्व होता है। शस्त्रों में प्रयागराज में स्नान की महिमा बताई जाती है। राजिम छत्तीसगढ़ का प्रयाग है। जिस भांति उत्तर प्रदेश के प्रयाग में भक्तगण धार्मिक कृत्य कर पवित्रता महसूस करते हैं। उसी भांति इस भूमि में कदम रखते ही सबसे पहले नतमस्तक करना नहीं भूलते। हरि और हर की नगरी के नाम से भी इन्हें जाना जाता है। भगवान विष्णु श्रीराजीवलोचन के रूप में विराजमान है। लोककथा के अनुसार सतयुग में राजा रत्नाकर ने जिनके यज्ञ से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु प्रकट हुए और उन्हें दो वरदान दिये जिनमें पहला श्रीराजीव लोचन के रूप में यहां सदा विराजमान रहने की तथा दूसरा मेरे बाद मेरे आने वाले वंशज आपके पूजा अर्चना तथा सेवा करते रहने की। इसी भांति त्रेतायुग वनवास काल के दौरान आयोध्या के चक्रवर्ती सम्राट दशरथ पुत्र राम, पुत्रवधु सीता एवं छोटे भाई लक्ष्मण नदी मार्ग से होते हुए महर्षि लोमष से मिलने कमलक्षेत्र पहुंचे और चौमासा व्यतित कर यहां विद्यमान असुरी शक्तियों का समूल नाश किया। इसी समय देवी सीता संगम में स्नान कर अपने हाथों से बालू के द्वारा शिवलिंग का निर्माण किया। यही श्री कुलेश्वरनाथ महादेव के रूप में प्रसिद्ध हुए। संगम के मध्य इनका विशाल मंदिर भक्तों को आकर्शित करते है। यहां शिव के अनेक शिवलिंग है जहां श्रद्धालुगण आकर विल्वपत्र, धतुरा, केसरैया, फुंडहर, दूध, दही, शक्कर, सरसों तेल, सुगंधित तेल, जल सहित अनेक पदार्थों से शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है तथा उनके पंचाक्षरी मंत्र ओम् नम: शिवाय हमेशा गुंजायमान होता रहता है।