(प्रीति शुक्ला)
कभी कभी ऐसा लगता है की बस खामोशी की चादर ओढ़ ली जाए। कोई कुछ भी ना कहे, मत पूछे कि दिल में कौन सा तूफान उठा है। कई बार मन ही नहीं करता, की मन की बात किसी से की जाए। पर मुश्किल ये है की खामोशी का मतलब तो तब ही है कि जब कोई हमारी अनकही को भी समझ सके।
तो कभी कभी कोशिश करें की अपनो की बातों को तवज्जो दें। जो कह दिया वो तो ठीक है, पर कभी वो भी समझने की कोशिश करें जो कहा ही नहीं गया है।
क्योंकि ये खामोशी कई बार बड़े तूफानों को समेटे हुए रहती हैं। इसलिए अपनो को थोड़ा समय दें। उनकी भावनाओं को समझे क्योंकि ये दौर बड़ा मुश्किल है इससे निकलने का एक ही तारिका है बातचीत।