राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का विवाद हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट होता हुआ राजभवन तक पहुंच गया। मुख्यमंत्री गहलोत और विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी की राजनीतिक पैतरेबाजी को हाई कोर्ट से झटका लगा तो शुक्रवार को नया राजनीति ड्रामा राजभवन में किया गया। यहां कांग्रेस के गहलोत समर्थक विधायकों ने विधानसभा सत्र तत्काल बुलाने की मांग को लेकर धरना दिया और नारेबाजी की। इससे राज्यपाल कलराज मिश्र खासे नाराज है। उन्होंने इस पूरे घटनाक्रम पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र लिखा है। पत्र मिलने के बाद से मुख्यमंत्री गहलोत की नींद उड गई है और परेशान हैं।
राजस्थान हाईकोर्ट का यथास्थिति बरकरार रखने से जुड़ा फैसला सचिन पायलट खेमे के पक्ष में आने के बाद से ही गहलोत सरकार तीखी बयानबाजी पर उतर आई है। पहले तो मुख्यमंत्री गहलोत ने राज्यपाल कलराज मिश्र को ही धमकी दे डाली और फिर राजभवन में कांग्रेसी विधायकों की फौज लेकर पहुंच गए। इसके बाद देर रात तक मंत्रिमंडल की बैठक कर मुख्यमंत्री विधानसभा सत्र बुलाने पर चर्चा करते रहे।
सूत्र बताते हैं कि राज्यपाल कलराज मिश्र के आधा दर्जन सवालों ने गहलोत को हिलाकर रख दिया है। देर रात चली बैठक में इन्हीं सवालों पर चर्चा हुई। राज्यपाल से खुलेआम टकराव पर आमादा गहलोत सरकार की बेसब्री इस आशंका से और बढ़ गई है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी पायलट खेमे के पक्ष में जाने पर सूबे की सियासत तेज मोड़ भी ले सकती है।
राज्यपाल ने अपने पत्र कहा है कि कैबिनेट नोट में विधानसभा सत्र की तारीख नहीं बताई गई है और न ही सरकार ने किस वजह से सत्र बुलाने की मांग की है, इसका कोई जिक्र है। इतना ही कैबिनेट ने सत्र के लिए कोई अप्रूवल भी नहीं दिया है। राज्यपाल ने कहा कि सामान्य परिस्थितियों में 21 दिन का नोटिस देना अनिवार्य होता है। इसके साथ ही राजभवन के बयान में कहा गया कि गवर्नर ने सरकार से कहा है कि सभी विधायकों की स्वतंत्रता और आने-जाने की आजादी सुनिश्चित करें। राज्यपाल ने यह भी पूछा है कि राज्य में कोविड-19 के हालात को देखते हुए विधानसभा सत्र कैसे बुलाया जा सकता है। राज्यपाल ने साफ निर्देश दिए हैं कि सरकार अपनी हर कार्रवाई में संवैधानिक मर्यादा और जरूरी प्रक्रिया का पालन जरूर करे।
वहीं सूत्र बताते हैं कि संवैधानिक स्थिति यही कहती है कि राज्यपाल को मंत्रिमंडल की सलाह के अनुरूप चलना होगा, लेकिन विशेष परिस्थितियों में राज्यपाल अपने विवेक से फैसला कर सकते हैं। चूंकि सुप्रीम कोर्ट में इस मसले पर सोमवार को बहस होनी है, तो ऐसे में बनती परिस्थितियां राज्यपाल को विवेकाधिकार का इस्तेमाल करने की इजाजत दे सकती हैं। यही गहलोत की परेशानी है। 109 विधायकों के साथ होने का दावा कर रहे गहलोत ने अपने चहेते एसओजी प्रभारी से सचिन पायलट समेत केंद्रीय मंत्री शेखावत के खिलाफ खरीद-फरोख्त के जरिये निर्वाचित सरकार गिराने की साजिश रचने का केस तो दर्ज करा दिया है।
संभवतः इसी कारण अशोक गहलोत शुक्रवार देर रात कैबिनेट से सलाह-मशविरा करते रहे। बैठक में विधानसभा सत्र बुलाने को लेकर राज्यपाल कलराज मिश्र के मुख्यमंत्री को भेजे गए आधा दर्जन सवालों पर भी चर्चा हुई। इन सवालों ने अशोक गहलोत की नींद उड़ा दी है। राज्यपाल ने गहलोत सरकार से पूछा कि अगर उनके पास पहले से बहुमत है तो विधानसभा सत्र बुलाकर बहुमत परीक्षण क्यों चाहती है। राजभवन ने शुक्रवार शाम को यह पत्र सरकार के पास भिजवाया था। मुख्यमंत्री आवास पर करीब ढाई घंटे चली बैठक में इसी पर चर्चा हुई। साथ ही राज्यपाल ने राज्य सरकार को भेजे अपने नोट में कहा है कि कोई भी संवैधानिक दायरे से ऊपर नहीं है और दबाव की राजनीति नहीं होनी चाहिए। राज्यपाल ने कहा कि उन्होंने कानूनी और संवैधानिक विशेषज्ञों से इस पर सलाह ली है। इसके बाद, छह बिंदुओं को उठाते हुए एक नोट सरकार के पास भेजा गया है।