डेनमार्क के विज्ञानियों ने एक व्यापक शाेध के बाद यह दावा किया है कि परिवेश का बढ़ता तापमान दुुनियाभर के लोगों की नींद पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। वन अर्थ नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन निष्कर्ष में दावा किया गया है कि मानक के प्रतिकूल तापमान वर्ष 2099 तक प्रत्येक व्यक्ति की नींद में 50-58 घंटे की कमी ला सकता है। बढ़ता तापमान कमजोर आय वाले देशों के नागरिकों में अनिद्रा की बड़ी समस्या पैदा कर सकता है। खासकर, वयस्कों व महिलाओं में। यूनिवर्सिटी आफ कोपेनहेगन से जुड़े अध्ययन के प्रथम लेखक केल्टन माइनर के अनुसार, ‘हमारे नतीजे बताते हैं कि नींद मानव स्वास्थ्य व उत्पादकता के लिहाज से आवश्यक प्रक्रिया है। बढ़ता तापमान इसमें गिरावट ला सकता है।” यह अध्ययन पहली बार ऐसा साक्ष्य प्रस्तुत करता है कि सामान्य से अधिक तापमान मनुष्य की नींद में कमी ला सकता है। अध्ययन में अंटार्कटिका को छोड़ सभी महाद्वीपों के 68 देशों के 47 हजार वयस्कों की 70 लाख रातों की नींद से जुड़े आंकड़ों का विश्लेषण किया गया। वयस्कों की नींद का आकलन करने के लिए उन्हें एक्सेलेरोमीटर आधारित स्लीप-ट्रैकिंग रिस्टबैैंड पहनाया गया था। अध्ययन बताता है कि बहुत गर्म रातों (30 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान) के दौरान नींद में औसतन 14 मिनट की कमी आती है। तापमान में वृद्धि सात घंटे से कम नींद के लिए भी जिम्मेदार है।