काशी यूं ही अविनाशी नहीं है। इसके केंद्र यानी नाभिस्थल में ज्ञानवापी यानी ज्ञान का कुआं है। मान्यता है भगवान शिव ने अपने स्वयंभू ज्योर्तिलिग का अभिषेक करने के लिए अपने त्रिशूल से इसका निर्माण किया था और जल रूप में माता पार्वती को ज्ञान प्रदान किया था। इसीलिए इस कूप का नाम ज्ञानवापी पड़ा। काशी ने आदिकाल से अनेक उतार-चढ़ाव देखे। विदेशी आक्रांताओं ने सनातन आस्था को रौंदने के लिए भक्तों द्वारा बनवाए गए इस भव्य मंदिर को बार-बार ध्वस्त किया, लेकिन ज्ञानवापी को न मिटा सके।
प्रख्यात सांस्कृतिक भूगोलवेत्ता प्रो. राना पीबी सिह कहते हैं कि गणितीय व खगोलीय मापन में भी ज्ञानवापी की स्थिति सिद्ध है। मध्यकाल में राजसत्ता के विरोध एवं प्रभाव के कारण विध्वंस के बाद बनवाए गए मंदिरों का स्थान जरूर इसके आसपास बदलता रहा, लेकिन आखिरी बार अकबर के श्ाासनकाल में राजसत्ता के संरक्षण्ा में बना मंदिर ज्ञानवापी पर ही था। संभवत: यही कारण है कि औरंगजेब जैसा क्रूर शासक भी उसे पूरी तरह नष्ट न कर सका और मंदिर के शिखर को ढक कर ऊपर से गुंबद बनवा मस्जिद का रूप दे दिया। विगत दिनों आई सर्वे रिपोर्ट ने एक बार फिर सच को सामने ला दिया।
डा. मोतीचंद द्वारा लिखित सबसे प्रामाणिक मानी जाने वाली ‘काशी का इतिहास”, ख्यात इतिहासकार डा. यदुनाथ सरकार की पुस्तक ‘हिस्ट्री आफ औरंगजेब” या जेम्स प्रिसेप की 1831 में प्रकाशित ‘बनारस इलेस्ट्रेटेड” में सभी तथ्य स्पष्ट हैं। प्रख्यात साहित्यकार शिवप्रसाद सिह की काशी त्रयी (वैश्वानर, नीला चांद और गली आगे मुड़ती है) में भी प्राचीन काशी, मध्यकालीन काशी और आज की काशी का वर्णन मिलता है। अनेक विदेशी इतिहासकारों ने भी काशी विश्वनाथ मंदिर की भव्यता, उस पर हुए आक्रमण और पुनर्निर्माण की घटनाओं का वर्णन किया है। इतिहास के अध्येता बीएचयू के पूर्व विशेष कार्याधिकारी विद्वान डा. विश्वनाथ पांडेय कहते हैैं कि पूरा इतिहास और सभी तथ्य यही बताते हैैं कि ज्ञानवापी स्थल पर मंदिर को तोड़कर ही मस्जिद बनाई गई है। पूरी काशी ही ज्योतिर्मय स्वरूप है। इसलिए सभी आक्रांताओं ने हिंदू आस्था के मानबिंदुओं को तोड़ने के लिए हर काल में यहां आक्रमण किया।
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प्राचीन प्रमाण
-विक्रमादित्य के शासन काल में 500 से 508 ईस्वी सन में मंदिर निर्माण
-405 ईस्वी में आए चीनी यात्री फाह्यान का यात्रा-वृत्तांत
-635 ईस्वी में आए चीनी यात्री ह्वेनसांग का यात्रा-विवरण
-राजघाट पर खोदाई में मिली नौंवी-दसवीं सदी की ‘अविमुक्तेश” लिखी मुहर
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किसने तोड़ा मंदिर, किसने कराया निर्माण
-11वीं सदी में गहड़वाल शासकों ने प्राचीन मंदिर का पुनर्निर्माण कराया
-12वीं सदी (1194-97) में मोहम्मद गोरी के आदेश पर कुतुबुद्दीन ऐबक ने तोड़ने का प्रयास
-1230 में इल्तुतमिश के शासनकाल में गुजरात के व्यापारी ने निर्माण कराया
-1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह शर्की का हमला, मंदिर तोड़कर बनवाई रजिया बीबी की मस्जिद
-1490 में सिकंदर लोदी ने किया ध्वस्त
-1585-90 के बीच राजा टोडरमल, मानसिह ने नारायण भट्ट के सहयोग से टोडरमल के पुत्र गिरधारी की देखरेख में कराया निर्माण
-1632 में शाहजहां ने दिया तोड़ने का आदेश, असफल
-1669 में औरंगजेब ने ध्वस्त किया, बनवाई औरंगजेबी मस्जिद, जिसे ज्ञानवापी मस्जिद कहते हैैं
-1752 में दत्तोजी सिंधिया और मल्हार राव ने पुनर्निर्माण के लिए चलाया आंदोलन
-1776-78 में महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने कराया पुनर्निर्माण
-1853 में महाराजा रणजीत सिह ने 1000 किलोग्राम सोने से शिखर मंडित किया