शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन में पाया है कि पर्यावरण में मौजूद टाक्सिक मेटल के संपर्क में आने से गर्दन, हृदय व पैरों की धमनियों में प्लैंक बनने, यानी कोलेस्ट्राल जमा होने के खतरा बढ़ जाता है। टाक्सिक मेटल को भारी धातु भी कहा जाता है। आर्सेनिक, कैडमियम व टाइटैनियम इसी श्रेणी में आती हैं और खाना, पानी, तंबाकू व वायु प्रदूषण के जरिये शरीर में प्रवेश करती हैं। यह अध्ययन ‘आर्टेरियोस्क्लेरोसिस, थ्रोम्बोसिस एंड वैस्कुलर बायोलाजी जर्नल” में प्रकाशित हुआ है। स्पेन स्थित इंस्टीट्यूट फार बायोमेडिकल रिसर्च हास्पिटल क्लीनिक डी वेलेंसिया से जुड़ी अध्ययन की मुख्य शोधकर्ता मारिया गराउ-पेरेज के अनुसार, ‘पर्यावरण में धातुएं सभी जगह मौजूद हैं और लोग किसी न किसी प्रकार इनके संपर्क में होते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि अगर प्रदूषण खत्म हो जाए तो वैश्विक स्तर पर दिल संबंधी मामलों में 31 फीसद की कमी आ सकती है।” नए अध्ययन में 1,873 वयस्कों को शामिल किया गया, जो स्पेन की एक आटो एसेंबली फैक्ट्री में काम करते थे। उनकी उम्र 40-55 वर्ष के बीच थी। इस दौरान पाया गया कि लोगों में एथेरोस्क्लेरोसिस बीमारी के विकास में धातु विशेषष या धातुओं के मिश्रण का बड़ा योगदान है। इस बीमारी में धमनियों में कोलेस्ट्राल जमा हो जाता है, जिसके कारण वे संकरी हो जाती हैं।