भाद्रपद मास की पूर्णिमा से पितृ पक्ष की शुरुआत हो जाती है जो आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि तक चलता रहता है। इस पितृ पक्ष के 16 दिन हमारे पूर्वजों को समर्पित होते हैं, कहा जाता है कि इन दिनों में पितरों को यमराज की ओर से मुक्त कर दिया जाता है और ऐसे में हमारे पूर्वज पृथ्वी पर अपने वंशजों के बीच आते हैं व उनसे अन्न जल की अपेक्षा रखते हैं। पूर्वजों की इस आशा को पूरा करने के लिए ही श्राद्ध और तर्पण किए जाते हैं, जिसके जरिए हमारे पितरों को अन्न और जल प्राप्त होता है।
क्या है सर्वपितृ अमावस्या
जिस तिथि में हमारे परिजन की मृत्यु होती है, श्राद्ध पक्ष की उसी तिथि में उनका श्राद्ध किया जाता है लेकिन अगर आपको किसी कारणवश उनकी मृत्यु की तिथि याद नहीं है, तो आप अपनी इस भूल को सुधारते हुए अमावस्या के दिन उनका श्राद्ध कर सकते हैं। इसीलिए पितृपक्ष की अमावस्या को सर्व पितृ अमावस्या कहा जाता है.।
इस बार सर्व पितृ अमावस्या 6 अक्टूबर बुधवार को पड़ रही है। यदि आपसे कोई भूल-चूक हो गयी हो और उसकी भरपाई करना चाहते हैं तो यहां बताए जा रहे तरीके से पितरों का श्राद्ध करने पर पितरों से आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है।
कैसे करें श्राद्ध पूजा
सर्व पितृ अमावस्या के दिन 16 ब्राह्मणों को भोजन कराना अत्यंत शुभ बताया गया है। श्राद्ध करते समय घर की दक्षिण दिशा में सफ़ेद वस्त्र पर पितृ यंत्र स्थापित करें। उनके निमित्त, तिल के तेल का दीपक जलाएं और सुगंधित धूप अर्पित करें। चंदन व तिल मिले जल से तर्पण दें। कुश के आसन पर बैठकर गीता के 16वें अध्याय का पाठ करें। इसके बाद ब्राह्मणों के लिए जो भोजन बनाया है, उसमें से 5 हिस्से निकालें, ये हिस्से देवताओं, गाय, कुत्ते, कौए और चींटियों के लिए निकालें। इसके बाद ब्राह्मणों को श्रद्धा पूर्वक खाना खिलाएं और वस्त्र-दक्षिणा देकर उन्हें विदा करें और पैर छूकर उनका आशीर्वाद लें।
दीपदान का महत्व
मान्यता है कि सर्व पितृ अमावस्या के दिन पितर अपने पितृ लोक लौट जाते हैं इसलिए अमावस्या के दिन दीप दान किया जाता है, ताकि उन्हें सही से रास्ता दिखाई दे। दीप दान के लिए सूर्यास्त के बाद घर की दक्षिण दिशा में तिल के तेल के 16 दीपक जलाया जाता है जिससे पितरों को सम्मानपूर्वक भेजने पर वे संतुष्ट होकर जाते हैं और अपने वंशजो को आशीर्वाद देते हैं। इस तरह परिवार में सुख समृद्धि बनी रहती है।