पाकिस्तान की मशहूर गायिका नय्यरा नूर का रविवार को निधन हो गया। उनका कराची में कुछ समय से इलाज चल रहा था। बुलबुल-ए-पाकिस्तान से नवाजी गईं 71 वर्षीया नूर भारत में भी काफी लोकप्रिय थीं। भारत के गुवाहाटी में 1950 में पैदा हुईं नूर अपने पीछे गहरी विरासत और मधुर प्रस्तुतियों का खजाना छोड़ गई हैं। डान न्यूज के अनुसार, नूर के भतीजे रजा जैदी ने निधन की खबर दी।
नूर के पिता आल इंडिया मुस्लिम लीग के सक्रिय सदस्य थे। 1958 में उनका परिवार पाकिस्तान के लाहौर में बस गया था। गायिकी के मामले में नूर लता मंगेशकर के साथ ही कानन बाला और बेगम अख्तर की प्रशंसक थीं। उन्होंने 1971 में पाकिस्तान टीवी के साथ पार्श्व गायिका के रूप में अपना करियर शुरू किया। नूर ने ‘घराना” और ‘तानसेन” जैसे फिल्मों में अपनी आवाज दी। उन्हें ‘घराना” के लिए सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायिका घोषित किया गया और ‘निगार” पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
नूर को उनकी गजलों के लिए याद किया जाएगा।
उन्होंने भारत-पाकिस्तान में गजल प्रेमियों के लिए कई महफिलों में प्रस्तुति दी थीं। उनकी प्रसिद्ध गजल ‘ऐ जज्बा-ए-दिल घर मैं चाहूं” है, जिसे प्रसिद्ध उर्दू कवि बेहजाद लखनवी ने लिखा है। फैज का लिखा हिदी गीत ‘बरखा बरसे छत पर” उन्होंने पति शहरयार जैदी के साथ मिलकर गाया था। नूर को 2006 में ‘बुलबुल-ए-पाकिस्तान” के खिताब से नवाजा गया था। 2012 तक उन्होंने पेशेवर गायिकी को अलविदा कह दिया था। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने उनके निधन पर दुख व्यक्त करते हुए कहा कि यह अपूर्णिय क्षति है।