सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार के फैसले से असहमति वाले विचार प्रकट करने को राजद्रोह नहीं कहा जा सकता। दरअसल कोर्ट ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने को लेकर दिए गए बयान पर जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कांफ्रेस पार्टी के अध्यक्ष फारुक अब्दुल्ला के खिलाफ कार्रवाई की मांग वाली याचिका 50 हजार के जुर्माने के साथ खारिज कर दी। जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस हेमंत गुप्ता की पीठ ने रजत शर्मा की ओर से दाखिल याचिका खारिज करते हुए शर्मा को आदेश दिया कि वह जुर्माने की रकम चार सप्ताह में सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट वेलफेयर फंड में जमा कराए।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि फारुक अब्दुल्ला के बयान में उन्हें कुछ भी इतना आपत्तिजनक नहीं दिखा जिस पर कोर्ट को कार्यवाही शुरू करने का आधार मिलता हो। इतना ही नहीं याचिकाकर्ता का इस मामले से कोई लेना देना नहीं है। साफ तौर पर यह मामला पब्लिसिटी इंटरेस्ट याचिका का दिखता है। याचिकाकर्ता सिर्फ प्रेस में अपना नाम देखना चाहता है। कोर्ट ने जुर्माने सहित याचिका खारिज करते हुए कहा कि ऐसे प्रयासों को हतोत्साहित किया जाना चाहिए।
इस मामले में दाखिल याचिका में फारूक अब्दुल्ला के जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने को लेकर दिए गए बयान को आधार बनाते हुए कहा गया था कि अब्दुल्ला का बयान राजद्रोह है। उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। एक गैर सरकारी संस्था से जुड़े याचिकाकर्ता रजत शर्मा और नेह श्रीवास्तव ने याचिका में कहा था कि बयान के मुताबिक पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला चीन को कश्मीर देना चाहते हैं, इसलिए उनके खिलाफ राजद्रोह की कार्रवाई होनी चाहिए। कहा गया था कि फारूक ने अपने बयान में कहा था कि वह अनुच्छेद 370 बहाल करने के लिए चीन की मदद लेंगे। यह बयान साफ तौर पर राजद्रोह है। इसके लिए फारूक को आईपीसी की धारा 124ए (राजद्रोह) के तहत दंडित किया जाना चाहिए।