
कोंडागांव। जिले में ईसाई मिशनरियों के बहकावे में आकर धर्मांतरण करने वाले जनजातीय परिवार अब अपने मूल सनातन धर्म में लौट रहे हैं। केशकाल विधानसभा के बडेराजपुर विकासखंड के ग्राम पिटीचुआ में 10 परिवारों ने ईसाई धर्म छोड़कर सनातन धर्म में ‘घर वापसी’ की। इनमें तीन बच्चे भी शामिल हैं। इन परिवारों ने खुलासा किया कि मिशनरियों ने बीमारी ठीक करने के नाम पर उन्हें झाँसे में लिया और कथित पवित्र पानी पिलाकर ईसाई मजहब अपनाने के लिए मजबूर किया।घर वापसी करने वाले एक परिवार के मुखिया गैंदलाल मरकाम ने बताया कि उनके छोटे बेटे को साँस की तकलीफ थी। कई डॉक्टरों के पास जाने के बाद भी कोई फायदा नहीं हुआ। तब कुछ लोगों ने उन्हें ईसाई मिशनरियों से मिलने की सलाह दी, जिन्होंने दावा किया कि प्रार्थना और पवित्र पानी से हर बीमारी ठीक हो सकती है। गैंदलाल ने बताया, “हमें प्रार्थना कराई गई, पानी पिलाया गया और कुछ समय के लिए बच्चे को आराम मिला। लेकिन बाद में फिर वही परेशानी शुरू हो गई।”इसके बाद उन्हें एहसास हुआ कि यह सब बहकावा था। मिशनरियों ने उन्हें बाइबिल थमाई और ईसाई नियमों का पालन करने को कहा, लेकिन इससे उनकी जिंदगी में कोई स्थायी बदलाव नहीं आया।जनजातीय समाज के ब्लॉक अध्यक्ष शंकर मरकाम ने कहा, “ईसाई मिशनरी भोले-भाले जनजातीय लोगों को लालच देकर उनके विश्वास का फायदा उठाते हैं। वे बीमारी ठीक करने, आर्थिक मदद और समस्याओं के समाधान का झाँसा देते हैं। लेकिन यह सब धर्मांतरण का जाल है।” उन्होंने केंद्र सरकार की जातिगत जनगणना और छत्तीसगढ़ सरकार के प्रस्तावित धर्मांतरण विरोधी कानून का स्वागत किया। उनका कहना है कि ऐसे कानून से मिशनरियों की मनमानी रुकेगी और जनजातीय लोग अपनी जड़ों से जुड़े रहेंगे।घर वापसी करने वाले एक अन्य व्यक्ति ने बताया कि ईसाई धर्म अपनाने के बाद उन्हें सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ा। शादी-ब्याह जैसे रीति-रिवाजों में दिक्कतें आईं, जिससे उनके परिवार को मानसिक तनाव हुआ। करीब डेढ़ साल बाद उन्होंने सनातन धर्म में लौटने का फैसला किया। इस वापसी से उन्हें मानसिक शांति मिली और समाज ने उनका स्वागत किया।