छत्तीसगढ में भगवान शिव का एक ऐसा लिंग है जो न केवल सुगंधों की बौछार करता रहता है, बल्कि अलग-अलग समय में अलग-अलग खुशबू निकलता है। यह शिवलिंग पुरातात्विक नगरी महासमुंद जिले के सिरपुर में स्थापित है। यहां प्रदेश की राजधानी रायपुर से सडक़ मार्ग के रास्ते से 85 किलोमीटर दूर है और जिला मुख्यालय महासमुंद से 40 किलोमीटर दूर स्थित है। भगवान शिव की महिमा को देखते हुए छत्तीसगढ़ का बाबा धाम भी कहा जाता है और जिसे पुरातात्विक धरोहरों को देखते हुए छत्तीसगढ़ का पुरातात्विक नगरी के नाम से भी पुकारा जाता है। सिरपुर को प्राचीन समय में बौद्ध नगरी कहा जाता है।
सिरपुर में महानदी के तट पर स्थित है। भगवान शिव के इस अद्भूत शिवलिंग को भगवान गंधेश्वर के नाम से जाना जाता है। सिरपुर में महानदी के तट के किनारे मनोरम दृश्य के साथ भगवान गंधेश्वर विराजमान हैं। भगवान शिव के इस अद्भूत शिवलिंग से निकलने वाली खुशबू को अनुभव करने के लिए भगवान गंधेश्वर के मंदिर में प्रवेश करते ही मिलता है। शिवलिंग को स्पर्श करने बाद हाथों में एक अजीब सी खुशबू आती है। यह खुशबू तुलसी के पौधे की तरह होती है।
मंदिर का निर्माण आठवीं सदी में हुआ था
महानदी के तट पर भगवान शिव की पूजा यहां गंधेश्वर महादेव के रूप में की जाती है। नदी तट से लगे इस मंदिर का निर्माण 8 वीं शताब्दी में बालार्जुन के समय में बाणासुर ने कराया था। भगवान शिव की शिवलिंग से निकलने वाली सुगंध के बारे में मंदिर के पुजारी नंदाचार्य दूबे ने बताया कि इसके बारे में एक देव कथा है कि सिरपुर 8वीं शताब्दी में बाणासुर की विरासत थी। वह शिव के उपासक थे। वह हमेशा शिव पूजा के लिए काशी जाया करते थे और वहां से एक शिवलिंग भी साथ में ले आया करते थे। एक दिन भगवान शंकर प्रगट होकर बाणासुर से बोले कि तुम हमेशा पूजा करने काशी आते हो, अब मैं सिरपुर में ही प्रगट हो रहा हूं। इस पर बाणासुर ने कहा कि भगवान मैं सिरपुर में काफी संख्या में शिवलिंग स्थापित कर चुका हूं। उसने भोलेनाथ से पूछा कि जब प्रगट होंगे तो उन्हें पहचाना कैसे जाए। इस पर भगवान ने कहा कि जिस शिवलिंग से गंध का अहसास हो, उसे ही स्थापित कर पूजा करो। तब से सिरपुर में शिवजी की पूजा गंधेश्वर महादेव के रूप में की जाती है। एक मान्यता यह भी है कि अभी भी गर्भगृह में शिवलिंग से कभी सुगंध तो कभी दुर्गंध आती है, इसलिए ही यहां भगवान शिव को गंधेश्वर के रूप में पूजते हैं। मंदिर के पुजारी के अनुसार यहां अलग-अलग समय में अलग-अलग खुशबूओं का अनुभव होता है।
भगवान शिव का यह अद्भुत शिवलिंग क्या वाकई 8वीं शताब्दी से है या फिर खुदाई निकला है। इस बात पुरातत्व विभाग से जुड़े गाइड सत्यप्रकाश ओझा ने बताया कि भगवान शिव का यह शिवलिंग यहां पुरातत्व विभाग को खुदाई से नहीं बल्कि आदीकाल से स्थित है। उन्होंने बताया कि वैसे सिरपुर में अनेक शिवलिंग हैं। पुरातत्व विभाग को खुदाई के दौरान अलग से 21 शिवलिंग मिले हैं। खुदाई में प्राप्त शिवलिंगों में भगवान गंधेश्वर की तरह खुशबू नहीं आती। उन्होंने बताया कि महानदी के किनारे होने के कारण मंदिर का काफी हिस्सा सालों पहले पानी और भूकंप के कारण भूमिगत हो गया था, जिसे फिर से रिनोवेट कराया गया है। इसे छत्तीसगढ़ का बाबा धाम भी कहा जाता है, जहां हजारों के तादात में कांवरिया दूर-दूर से सावन में जल चढ़ाने आते है। मान्यता है कि यदि कोई सच्चे मन से भगवान गंधेश्वर से कामना करे तो उसकी मुरादे जरूर पूरी करते हैं। सिरपुर में वैसे तो कई पुरातात्विक धरोहर है, इसी के चलते लंबे समय से इसे वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल करने की मांग चल रही है।