छत्तीसगढ के जशपुर की मिट्टी में सोना मिला है। यह के भू-गर्भ में विशाल सोने का भंडार मिलने की संभावना है। यानी दक्षिण अफ्रीका की तरह जशपुर में भी सोने की खान खुल सकती है। दरअसल यहां की नदियों में स्वर्ण कणों के मिलने से उम्मीद है कि यहां सोने के भंडार है। अभी यहां स्वर्ण उत्खनन की संभावना तलाशने के लिए नए सिरे से सर्वे की तैयारी हो रही है। मगर जिला प्रशासन और खनिज विभाग के अधिकारी कुछ भी कहने से बच रहे है।
झोरा जनजातीय समुदाय जशपुर जिले की ईब और उसकी सहायक सोनाजोरी नदी की रेत से स्वर्ण कण निकालने का काम वर्षों से कर रहा है। नदियों से स्वर्ण कण निकलते भी है। सोना निकलने पर केंद्र सरकार का इस ओर ध्यान गया। वर्ष 2010 में केंद्र ने इसे गंभीरता से लिया। इसके बाद खनिज मंत्रालय ने दो निजी कंपनियों जिंदल स्टील एंड पॉवर लिमिटेड और महाराष्ट्र के मुंबई की कंपनी द मार्क के जरिए सोने की संभावनाओं के मद्देनजर सर्वे कराया। इसके लिए बाकायदा मान्यता परमिट जारी किए गए थे। छह माह तक चले सर्वे के बाद स्वर्ण भंडार होने की पुष्टि तो हुई, लेकिन मात्रा और भंडार के स्थान का पता नहीं चल सका। इस बीच सर्वे को उत्खनन उद्योग के विरोध के कारण बीच में ही रोक दिया गया था। अब फिर से जिले में सोने के भंडार के स्रोत की ठोस जानकारी हासिल करने के लिए सर्वे कराए जाने की तैयारी है।
झोरा जनजाति के लोग सदियों से जिले की ईब और सोनाजोरी नदी के पानी से स्वर्ण कण निकालने का काम कर रहे हैं। जिले के कांसाबेल और फरसाबहार इलाके में नदी से सोना निकालने का काम बारिश का मौसम शुरू होते ही चालू हो जाता है। यहां महिला, पुरुष और बच्चे नदी की रेत को छानकर सोना निकालते हैं। सोना निकालने के लिए अनोखे औजार का प्रयोग करते हैं। लकड़ी के बने इस पात्र को दोबायन कहा जाता है। आयताकार इस यंत्र का बीच का भाग कटोरानुमा होता है। इसमें नदी के पानी और मिट्टी को लेकर छाना जाता है। इससे स्वर्ण कण इस पात्र के बीच में निर्मित छिद्र में जमा हो जाते है।