गरियाबंद-गरियाबंद के कांडसर गौशाला में रंग और गुलाल के बजाय राख से होली खेली जाती है। होली के मंच पर मुख्य अतिथि गाय होती हैं। इस साल गाय के साथ 3 और विशिष्ट अतिथि बनाए गए हैं, जिनमें आम वृक्ष, चींटी और गौरेया शामिल है। यहां नगाड़े की थाप पर नहीं, बल्कि ढपली से भजन-कीर्तन होता है। इस गौशाला में आपको प्रकृति के प्रति प्रेम की झलक होली के त्योहार में मिल जाएगी। यहां जुटी भीड़ प्रकृति के प्रति आस्था रखने वालों की है। यहां 5 दिन पहले से होली की रस्मों की शुरुआत हो जाती है। खास बात यह है कि आयोजन की मुख्य अतिथि गौ माता होती हैं, पर हर बार विशिष्ट अतिथि बदले जाते हैं। यह अतिथि भी प्रकृति के रखवालों में से एक होते हैं। इस बार आम वृक्ष, गौरैया चिड़िया और बड़ी चींटी विशिष्ट अतिथि बने हैं। आयोजन स्थल पर अतिथियों को लाने महिलाएं कलश यात्रा लेकर निकलती हैं। इस बार प्रकृति प्रेम से जुड़ी 200 से भी ज्यादा माता-बहनें कलश यात्रा में शामिल हुईं। अतिथियों के स्वागत में पूरे रास्ते भर नए कपड़े बिछाए गए। लगभग 2 किमी दूर से अतिथियों का स्वागत कर यज्ञ स्थल पर लाया गया। स्वागत की इस बेला को देखने प्रदेश के दुर्ग, रायपुर, महासमुंद, जशपुर समेत दूरदराज से भी श्रदालु जुटे हुए थे।लगभग डेढ़ किलोमीटर पैदल ग्राम के मुहाने पर अतिथि मौजूद रहते हैं। भजन-कीर्तन और जयकारे के साथ अतिथि स्थल पर लाए जाते हैं, फिर अगले ही दिन 3 दिवसीय लगातार चलने वाले यज्ञ की शुरुआत हो जाती है। गोबर कंडा और औषधीय गुण वाली लकड़ियों की घी के साथ आहुति दी जाती है। होलिका दहन के मुहूर्त पर पूर्णाहुति होती है और फिर अगली सुबह तिलक लगाकर होली खेली जाती है।