
सीरम इंस्टीट्यूट आफ इंडिया (एसआईआई) अगले साल अप्रैल मध्य में सर्वाइकल कैंसर (गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर) से बचाव करने वाली स्वदेशी “सर्वावैक” वैक्सीन लांच करेगा। यह अंतरराष्ट्रीय बाजार में उपलब्ध वैक्सीनों से काफी सस्ती होगी। एसआईआई के सरकार और नियामक मामलों के निदेशक प्रकाश कुमार सिंह ने बताया कि गर्भाशय के कैंसर से बचाव करने वाली “सर्वावैक” नाम की इस स्वदेशी वैक्सीन का इस्तेमाल जनस्वास्थ्य कार्यक्रमों में करने के लिए डीजीसीआई की मंजूरी मिल गई है। साथ ही इसे सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रम में इस्तेमाल के लिए सरकारी सलाहकार समूह एनटीजीआई ने मंजूरी दे दी है।
मौजूदा समय में देश इस टीके के लिए पूरी तरह से विदेशी निर्माताओं पर निर्भर है। तीन विदेशी कंपनियां एचपीवी टीके का निर्माण करती हैं, जिनमें से दो कंपनियां भारत में अपने टीके बेचती हैं। बाजार में उपलब्ध टीके की प्रत्येक खुराक की कीमत चार हजार रुपये से अधिक है। एसआइआइ के टीके काफी कम दर पर उपलब्ध होने की संभावना है। सितंबर 2022 में एसआईआई के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) अदार सी. पूनावाला ने कहा था कि भारत में एचपीवी टीके 200-400 रुपये प्रति खुराक की सस्ती कीमत पर उपलब्ध होगी।
टीकाकरण पर राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह (एनटीएजीआई) के अध्यक्ष डा. एनके अरोड़ा ने बताया कि भारत 2023 के मध्य तक राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के तहत 9-14 आयु वर्ग की लड़कियों के लिए सर्वाइकल कैंसर के स्वदेश विकसित ह्यूमन पैपिलोमा वायरस वैक्सीन (एचपीवी) को लागू करने की स्थिति में होगा।
एचपीवी टीका मुख्य रूप से एचपीवी यानी ह्यूमन पेपिलोमा वायरस से होने वाले कैंसर से आपका बचाव करता है। बाहरी कुछ देशों में यह वायरस हर चार में से एक व्यक्ति में पाया जाता है। भारत में दुनिया की लगभग 16 प्रतिशत महिलाएं हैं और यहां सर्वाइकल कैंसर के सभी मामलों का लगभग एक चौथाई है तथा वैश्विक स्तर पर यहां सर्वाइकल कैंसर से लगभग एक तिहाई मौतें होती हैं। हाल के कुछ अनुमानों के अनुसार, भारत में हर साल लगभग 80 हजार महिलाओं को सर्वाइकल कैंसर होता है और 35 हजार महिलाओं की इस कैंसर के कारण मृत्यु हो जाती है।
भारत अब तक एचपीवी टीका क्यों नहीं बना पाया, इस पर डा. अरोड़ा ने कहा कि टीके की आपूर्ति विश्व स्तर पर एक सीमित कारक रही है। पिछले पांच वर्षों में, एचपीवी टीके की वैश्विक आपूर्ति में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है। भारत ने इस दिशा में पहल की है। प्रमुख भारतीय टीका निर्माताओं में से एक एसआईआई ने जैव प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के सहयोग से चार वैलेंट एचपीवी वैक्सीन विकसित किया है। उन्होंने कहा, “हमें जानकारी मिली है कि तीन अन्य भारतीय टीका निर्माता भी एचपीवी टीका विकसित करने के विभिन्न् चरण में हैं।” डा. अरोड़ा ने कहा कि एचपीवी संक्रमण को रोकने के लिए टीके 2006 से उपलब्ध हैं।
अनुशंसित उम्र में इसकी खुराक दिए जाने पर एचपीवी टीकाकरण 90 प्रतिशत से अधिक एचपीवी कैंसर को रोक सकता है। भारत में किए गए अध्ययनों ने संकेत दिया है कि एचपीवी टीके की एकल खुराक का असर 95 प्रतिशत से अधिक है। अध्ययनों के आधार पर, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अब सिफारिश की है कि 9-14 वर्ष के बच्चों के लिए टीके की एक खुराक भी प्रभावी है। वर्ष 2021 तक वैश्विक एचपीवी टीकाकरण कवरेज केवल 13 प्रतिशत था। वहीं 2020 तक कम और निम्न-मध्यम आय वाले एक-तिहाई से भी कम देशों ने अपने राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रमों में एचपीवी टीके की शुरुआत की थी।