23 साल के राहुल ने अपनी जिंदगी में कभी दीवार नहीं चढ़ी। 14 मई 2018 की सुबह 7.20 बजे ऐसा छलांग लगाया कि दुनिया ने सलाम किया। विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंटएवरेस्ट फतह कर तिरंगा लहराया। यह वह पल था जिसे जिंदगी भर नहीं भूल पाउंगा। चोटी में साक्षात भोलेनाथ यानी कैलाश पर्वत नजर आने लगा। स्वर्ग का आभास हुआ। माउंटेनमैन और यंगेस्ट का खिताब हासिल करने वाले अंबिकापुर के राहुल गुप्ता के लिए जिंदगी का यह सबसे खास पल था। एवरेस्ट की यादों को ताजा करते हुए आगे कहा कि सुबह जैसे ही मैं एवरेस्ट पर पहुंचा तो आंखों में खुशी के आंसू थे। चारों तरफ बर्फ और तेज हवाएं। तिरंगे के साथ जब खड़ा हुआ तो मुझे अपना भारत नजर आया। कैलाश मानसरोवर के दर्शन हुए तो स्वर्ग जैसा महसूस होने लगा।
राहुल ने यह भी कहा कि 8848 मीटर की ऊंचाई पर पहुंचा तो 22 लोगों की टीम में सिर्फ 14 खड़े थे। तीन साथियों की मौत हो चुकी थी। जबकि बाकी नहीं चढ़ पाए। 15 मिनट बाद मुझे मैसेज आया कि तूफान आने वाला है। मौसम खराब होने के कारण 6700 मीटर नीचे उतरे थे कि स्वास्थ्य खराब हो गया। इस पर हेलिकाप्टर से रेस्क्यू किया गया। फिर तीन दिन आइसीयू में रहना पड़ा। पूरी तरह स्वस्थ होने में छह महीने लगे और मानसिक तौर पर डेढ़ साल में ठीक हो पाया। स्वस्थ होने पर वे राष्ट्रपति से मिले और चोटी पर फहराए तिरंगे को फ्रेम कर उन्हें भेंट किया था, जो आज भी उनके चेंबर में है। छत्तीसगढ़ के युवाओं को एडवेंचर में आगे बढ़ाना ही प्रमुख लक्ष्य है।
राहुल ने बताया कि उसका सपना आइएएस बनने का था। दिल्ली विवि के किरोड़ीमल कॉलेज में एडमिशन मिला। यहीं से एडवेंचर का चस्का चढ़ा। प्रतिस्पर्धी कॉलेज सेंट स्टीफन में हाइकिंग के लिए गया। वहां मुझे कह गया कि आप आउट साइडर हो। मौका नहीं दिया जाएगा। यह शब्द मुझे चुभ गया। मैंने खुद को चैलेंज दिया। अब तो मैं अपने विवि को सबसे बेस्ट दूंगा। आखिरकर कामयाबी मिली। देश का पहला यंगेस्ट व राज्य का पहला पर्वतारोही का खिताब मिला। गर्व होता है अब डीयू को अलग पहचान दे सका।
राहुल ने कहा कि दो बार असफलता भी हाथ लगी थी। पहली बार 2015 में उन्होंने प्रयास किया था, तब प्राकृतिक आपदा की वजह से वापस बुला लिया गया था। 2016 में चोटी तक पहुंचने में महज 648 मीटर का फासला रह गया था। 2018 में हिमालय फतह (हिलेरी प्वाइंट) करने को बस 200 मीटर का फासला बचा था। इस बीच बालोद निवासी छत्तीसगढ़ के ब्लेड रनर के नाम से मशहूर पर्वतारोही चित्रसेन साहू मिले। एक कान्फ्रेस में उन्होंने कहा कि क्या मैं भी पर्वत चढ़ सकता हूं। मैंने तत्काल हां कर दी। जब पता चला कि उसे दोनों पैर नहीं है। स्तब्ध रह गया। फिर मैंने सोच बदली। अगर हौसला हो तो सबकुछ संभव है। हमारी टीम उसे ट्रेनिंग दे रही है। अब वह दो पर्वत लांघ चुके हैं। अफ्रीका की सबसे ऊंची चोटी माउंट किलिमंजारो को फतह करने के बाद आस्ट्रेलिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट कोजिअस्को पर तिरंगा लहरा चुका हैं। चित्रसेन ने 14000 फीट से स्काई डाइव कर नेशनल रिकॉर्ड बनाया है।
राहुल ने कहा कि माउंट एवरेस्ट पर नेपाल और चाइना का अधिकार है। इंटरनेशनल बॉर्डर को लेकर यहां भारी कंट्रोवर्सी है। एनएमए यानी नेपाल माउंटेनिंग एसोसिएशन,चाइना-तिब्बत माउंटेनिंग एसोसिएशन (सीटीएमए) के मुकाबले कमजोर नजर आता है। चीन पूरी तरह से स्वामित्व चाहता है। क्योंकि उसे पता है नेपाल के पास सैन्य शक्ति और तकनीक में कमजोर है। इसी का वह फायदा उठा रहा है। ऐवरेस्ट पर पांच हजार ऊंचाई तक सड़क निर्माण कर चुका है। 5 जी नेटवर्क है। जिसके रडार पर नेपाल तक आता है। 2015 के बाद लगातार खुद सर्वे कर रहा है। ओवरऑल चाइना की नीयत सिर्फ ऐवरेस्ट को हथियाने का है।