एक नए शोध से पता चला है कि दिल का दौरा पड़ने के बाद पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को जीवन रक्षक उपचार मिलने की संभावना कम होती है। शोध निष्कर्ष यूरोपियन सोसाइटी आफ कार्डियोलाजी (ईएससी) के साइंटिफिक कांग्रेस ईएससी एक्यूट कार्डियोवैस्कुलर केयर-2022 में प्रस्तुत किया गया। डेनमार्क स्थित कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी हास्पिटल से जुड़ी अध्ययन की लेखिका डा. सारा होले के अनुसार, ‘हमारे अध्ययन में महिलाओं व पुरुषों में दिल का दौरा पड़ने के बाद कार्डियोजेनिक शाक के समान क्लीनिकल लक्षण पाए गए। यह एक पूर्व प्रभावी अध्ययन था, इसलिए यह जानना कठिन है कि चिकित्सकों ने कुछ तय उपचारों का निर्णय क्यों लिया। हालांकि, निष्कर्ष बताते हैं कि चिकित्सक महिलाओं को दिल का दौरा पड़ने व कार्डियोजेनिक शाक विकसित होने की आशंका के प्रति अधिक जागरूक हैैं और यह समान प्रबंधन व परिणामों की दिशा में अहम कदम हो सकता है।” कार्डियोजेनिक श्ााक वह अवस्था है, जिसमें दिल विभिन्न् अंगों में रक्त का समुचित संचार नहीं कर पाता। अध्ययन के दौरान कार्डियोजेनिक शाक वाले कुल 1,716 मरीजों के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया, जिनमें 438 (26 प्रतिशत) महिलाएं थीं। पाया गया कि दिल का दौरा पड़ने के 30 दिनों बाद 50 प्रतिश्ात पुरुष जिंदा बचे, जबकि 38 प्रतिशत महिलाएं मौत को मात दे सकीं। साढ़े आठ साल बाद 27 प्रतिशत महिलाएं जिंदा थीं, जबकि 39 प्रतिशत पुरुष जीवित बचे।