सूरत। कोरोना काल में रोज कई अचंभित करने वाले मामले सामने आ रहे हैं। जहां रोज हजारों लोगों की जान जा रही है। वहीं हजारों लोग ठीक भी हो रहे हैं। अमीर हो या गरीब कोरोना ने सबको बेहाल कर रखा है। जिसके पास पैसे हैं वह अपना इलाज करा ले रहा है, लेकिन जिसके पास पैसे नहीं उन गरीबों को अपनी जान गंवानी पड़ रही है। कुछ शहरों से अस्पलातों में पैसे वसूलने की खबरें भी सामने आ रही हैं। ऐसा ही एक मामला सूरत में सामने आया जहां एक व्यापारी के भाई और मां को कोरोना हुआ तो अस्पताल ने साढ़े १२ लाख का बिल थमा दिया। इसके बाद व्यापारी ने जो कुछ किया वह महंगे अस्पतालों के मुंह पर तमाजा मारने जैसा है। दरअसल यहां एक व्यापारी ने अपने पूरे ऑफिस को अस्पताल में बदल दिया। यहां नि:शुल्क उपचार किया जाएगा।
सूरत के बिजनेसमैन बोले, अस्पताल ने मुझे साढ़े बारह लाख का बिल थमाया, तब लगा गरीबों के लिए जरूर कुछ करना चाहिए। परिवार को जब कोरोना हुआ तो गरीबों के दर्द का अहसास हुआ, जब तक कोरोना रहेगा, तब तक फ्री अस्पताल चलते रहेगा। मेरे घर में मुझे, मेरी मां और भाई को कोरोना हुआ था। मेरी मां 45 दिनों में कोरोना से रिकवर हुईं। मेरा भाई 24 दिनों तक एक प्राइवेट हॉस्पिटल में एडमिट रहा। हॉस्पिटल ने साढ़े बारह लाख रुपए का बिल बना दिया। इतना पैसा देने के बाद भी भाई की हालत खराब ही थी। वो एकदम सूख गया था। अस्पताल में उसके साथ व्यवहार भी ऐसा हुआ जैसे फ्री में इलाज करवाने आए हों। इस घटना के बाद मेरे मन में आया कि हमने पैसों का इंतजाम कर लिया, लेकिन उन गरीबों का क्या हाल हो रहा होगा, जिनके पास इलाज के पैसे ही नहीं। बस तभी सोच लिया था कि कोरोना मरीजों के लिए एक अस्पताल बनाना है, जहां फ्री में सबको इलाज मिले।
अस्पताल में ८४ बेड, सभी में ऑक्सीजन
अस्पताल में कुल 84 बेड हैं। इनमें सभी में ऑक्सीजन की सुविधा उपलब्ध है। यह कहानी सूरज में प्रॉपर्टी का काम करने वाले कादर शेख की है। उन्होंने कोरोना मरीजों के लिए 84 बेड वाला अस्पताल तैयार किया है। महज 20 दिनों में तैयार किए गए इस अस्पताल में 10 आईसीयू बेड हैं। सभी बेड पर ऑक्सीजन की सुविधा है। यहां इलाज, खाना-पीना और दवाइयां तक मुफ्त में दी जा रही हैं। हालांकि अब इसका संचालन सूरत नगर निगम कर रहा है। कादर शेख कहते हैं, साढ़े बारह लाख रुपए का बिल बना तो हमने हॉस्पिटल से पूछा कि इतना बड़ा बिल कैसे बन गया। सांसद तक से बात करवा दी, तब कहीं जाकर एक लाख रुपए कम हुए। भाई की कोरोना रिपोर्ट तो नेगेटिव आ गई थी लेकिन उसकी हालत देखकर ऐसा लग रहा था कि अस्पताल ने इसे अच्छा नहीं बल्कि पहले से और ज्यादा कमजोर कर दिया है। कोविड नेगेटिव आने के बाद भी उन्होंने भाई को पॉजिटिव मरीजों वाले वार्ड में ही रखा था। हर तीसरे दिन किसी न किसी चार्ज के नाम पर वसूली की जाती थी। भाई के डिस्चार्ज वाले दिन ही मैंने सोच लिया था कि गरीबों के लिए कुछ करना है। सूरत के अडाजण में श्रेयम कॉम्पलेक्स में मेरे पास तीन फ्लोर हैं। मैं वहां से प्रॉपर्टी का कामकाज करता हूं। फिर मैंने सांसद से बात की और उन्हें कहा कि, मैं अपनी तीन फ्लोर पर कोरोना मरीजों के लिए अस्पताल तैयार करके देना चाहता हूं लेकिन शर्त यही है कि जो भी उसे चलाए, इलाज पूरी तरह से फ्री दे और खाना-पीना, दवाइयां भी फ्री में मिले। उन्होंने तुरंत निगम अधिकारियों से बातचीत की और हमें अस्पताल तैयार करने की परमिशन मिल गई। हमने महज 20 दिन में अस्पताल तैयार कर दिया। दो फ्लोर पर 42-42 बेड रखे हैं और एक फ्लोर को मेडिकल स्टाफ के रुकने के हिसाब से बनाया। इसके बाद निगम ने वहां कोरोना मरीजों का इलाज शुरू कर दिया।